अजित गुप्ता का कोना

साहित्‍य और संस्‍कृति को समर्पित

हमारे मन में बसा है राजतंत्र

वाह रे लोकतंत्र! तू कहने को तो जनता के मन में बसता है लेकिन आज भी जनता तुझे अपना नहीं मानती! उसके दिल में तो आज भी रह-रहकर राजतंत्र हिलोरे मारता है। मेरे सामने एक विद्वान खड़े हैं, उनके बचपन को मैंने देखा है, मेरे मुँह से तत्काल निकलेगा कि अरे तू! तू कैसे बन […]

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