अजित गुप्ता का कोना

साहित्‍य और संस्‍कृति को समर्पित

उद्देश्‍य रहित जीवन की भी आवश्‍यकता है

Written By: AjitGupta - Aug• 08•12

 

कहते है जीवन का कोई उद्देश्‍य होना चाहिए लेकिन मुझे लगता है कि एक आयु के बाद जीवन उद्देश्‍य रहित होना चाहिए। जब जीवन में उद्देश्‍य लेकर चलते हैं तो किसी न किसी मंजिल को पाने की चाहत रहती है। मंजिल में अनेक सहयात्री होते हैं। सभी उस मंजिल को पाना चाहते हैं। स्‍वाभाविक रूप से एक प्रतिस्‍पर्द्धा का जन्‍म होता है। कई बार अनावश्‍यक ईर्ष्‍या भी जन्‍म ले लेती है। जीवन में उद्देश्‍य की पूर्ति हो या नहीं लेकिन आपके जीवन से प्रेम समाप्‍त होने लगता है। आपके अपने नजदीकी भी आपकी आलोचना करने लगते हैं – अरे वो, क्‍या था कल तक? सड़क पर मेरे सामने घूमता था और आज पता नहीं कैसे वहाँ पहुँच गया है? उसकी उपलब्धि को मानने के लिए अक्‍सर लोग मानसिक रूप से तैयार नहीं होते हैं। उसके उस रूप को प्रचारित करने लगते हैं जिससे उसका सामाजिक क्षुद्र रूप दिखायी दे।

आप यदि सफलता की सीढ़ी पर चढ़ भी गए हैं तब भी आप देखेंगे कि ऐसे कितने ही लोगों का प्रेम आप खो चुके हैं जो कभी आपके अपने थे। कुछ नए सम्‍बंध बन जाते हैं, आप उन्‍हीं को पाकर खुश होते हैं लेकिन ये सारे सम्‍बंध भी उस सफलता के साथ ही जुड़े होते हैं। जैसे ही आप वहाँ से हटे, वे भी अर्न्‍तधान हो जाते हैं। लेकिन जीवन में सभी को अपना उद्देश्‍य तो पाना ही है, इसलिए चाहे प्रेम मिले या ईर्ष्‍या, उद्देश्‍य के लिए प्रयत्‍न तो करना ही है। लेकिन आज मुझे एक चिन्‍तन मिला कि एक उम्र आने के बाद यदि जीवन उद्देश्‍य रहित हो तो शायद हम प्रेममय जीवन व्‍यतीत कर सकते हैं। परिवार में, समाज में, सभी क्षेत्रों में अपनी सत्ता की चाहत को अपने मन से निकाल देना ही उद्देश्‍य रहित जीवन है। लोग कहते हैं कि परिवार में बाप-बेटे और सास-बहु का झगड़ा शाश्‍वत है। यह झगड़ा क्‍या है? यह झगड़ा केवल सत्ता का है। बेटा जैसे ही अपने पैरों पर खड़ा होता है, वह चाहता है कि उसकी बात परिवार में मान्‍य हो। जब उसकी बात को यह कहकर नकार दिया जाता है कि अभी हम बैठे हैं, तुम चुप रहो, तब उसका अहम् आहत होता है और वह अपनी सत्ता को प्राप्‍त करने के लिए झगड़ा करता है। इसी प्रकार सास और बहु का भी झगड़ा है। बहु कहती है कि अब यह घर मेरा भी है, और मेरी बात को भी मान्‍यता मिलनी चाहिए। लोग कहते हैं कि महिला ही महिला की दुश्‍मन होती है लेकिन मेरा मानना है कि ऐसा नहीं है। यह सत्ता का संघर्ष है। सास चाहती है कि परिवार में मेरी ही सत्ता स्‍थापित रहे जबकि बहु भी वर्तमान में चाहने लगी है कि अब सत्ता पर मेरा अधिकार है। इसलिए यह झगड़ा है।

समाज में भी यदि आप सामाजिक कार्यकर्ता हैं तब यही सत्ता आपके वर्चस्‍व को प्रतिदिन चुनौती देती है। हम भूल जाते हैं कि हमारे कार्य का उद्देश्‍य क्‍या है, बस ध्‍यान रहता है कि हमारी सत्ता है या नहीं? कार्य कहीं पीछे छूट जाता है और सत्ता प्रमुख हो जाती है। आज राजनैतिक दलों में क्‍या हो रहा है, बुजुर्ग राजनेता भी अपनी सत्ता के लिए रोज ही नवीन दलों की घोषणा कर रहे हैं। यदि सभी बुजुर्ग अपना जीवन उद्देश्‍य रहित जीने का संकल्‍प ले तब शायद टकराव कम हो जाएंगे। इसीलिए भारतीय संस्‍कृति में 50 वर्ष की आयु के बाद वानप्रस्‍थ आश्रम और 75 के बाद संन्‍यास आश्रम की व्‍यवस्‍था को आदर्श व्‍यवस्‍था बताया गया है। 50 वर्ष के बाद हम परिवार से अपनी सत्ता को समाप्‍त करने का प्रयास करें और 75 के बाद समाज से अपनी सत्ता को समाप्‍त करने की पहल करें।

उद्देश्‍य रहित जीवन, एक आनन्‍द का जीवन होगा। जब आप किसी भी उद्देश्‍य के लिए कोई लक्ष्‍य निर्धारित नहीं करेंगे। जब आप किसी भी उत्तरदायित्‍व के लिए स्‍वयं को सत्ता-संघर्ष में नहीं उलझाएंगे। ह‍मारे बाद भी यह दुनिया ऐसे ही चलेगी तो हम क्‍यों चिन्‍ता करें कि हमारे नहीं रहने से कुछ अहित हो जाएगा। मैंने तो अब निश्‍चय किया है कि अपने जीवन को उद्देश्‍य रहित बनाऊँगी। अब कोई चाहत शेष नहीं। अधिकार की कोई बात नहीं, केवल अपने कर्तव्‍य को पूरा करने की ईच्‍छा ही प्रमुख होगी। जितना छोड़ सको, छोड़ दो, नहीं तो एकसाथ छोड़ने में कठिनाई होगी। स्‍वयं को आडम्‍बरों से रिक्‍त करने की ओर ध्‍यान देना है। प्रत्‍येक व्‍यक्ति के लिए केवल प्रेम को ही महत्‍व देना है। अब मांगना कुछ नहीं है, अपनी मर्जी थोपना भी नहीं है, बस दुनिया को इसी प्रेमभाव से चलने दो।

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36 Comments

  1. ‘अधिकार की कोई बात नहीं, केवल अपने कर्तव्‍य को पूरा करने की ईच्‍छा ही प्रमुख होगी’
    ये छोटी बात नहीं| आज जब हम सिर्फ और सिर्फ हक के लिए जागरूक होते हैं, ये बहुत बड़ी बात है| शुभकामनाएं इस सदेच्छा के लिए|

  2. आपने विचार का मुद्दा दिया है। अभी सहमति-असहमति न देकर कुछ चिंतन करता हूं, यदि किसी निष्कर्ष तक पहुंचा तो फिर आऊंगा।
    फिलहाल प्रसाद जी की दो पंक्तियां
    इस पथ का उद्देश्य नहीं है श्रांत भवन में टिक रहना
    किंतु चले जाना उस हद तक जिसके आगे राह नहीं

    • AjitGupta says:

      मनोज जी, रात को सोने से पूर्व आज यह चिंतन मन में आया। सोचा यदि सुबह उठने तक भी स्‍मरण रहा तो इस पर पोस्‍ट लिखूंगी। आपके विचार आवश्‍यक हैं, इससे ही चिंतन को गति मिलेगी। आभार।

  3. kailash goyal says:

    डॉ. अजित जी का कोना मैंने ध्यान से पढ़ा . इस में ५० वर्ष की आयु के बाद घर घर गर्स्थी व ७५ वर्ष की बाद समाज की गति विधियों से मनुष्य को अपनी सोच में बदलाव लाना बहुत सार्थक होगा. ५० वर्ष से ७५ वर्ष की आयु समाज सेवा के लिए उप्प्युक्त है. इसके पश्चात आध्यात्मिकता की और जाना चाहिए . जीवन सार्थक होगा

  4. गरिमामय वानप्रस्थ इसे ही कहते हैं !

  5. सार्थक लेख ….. सारा खेल ही सत्ता का है ….

  6. ravikar says:

    सत्ता का संघर्ष ही, दिखता कारक मूल |
    संस्था को गति दे रहे, अपने अपने रूल |
    अपने अपने रूल, दिशा गर सबकी साझी |
    रहे संतुलित वेग, कहीं कुछ भी न बाझी |
    दिशा हुई विपरीत, खाय बेढब हिचकोले |
    बुद्धिमान जो होय, किनारे खुद से हो ले ||

    • AjitGupta says:

      रविकर जी आप तो प्रत्‍येक पोस्‍ट में जान फूंक देते हैं, आभार।

  7. वसंत पोतदार की श्रृंखला ‘रविवार’ में छपती थी ‘कुछ जिंदगियां बेमतलब’. जीवन तो संदर्भों सहित सार्थक/निरर्थक साबित होता है.

  8. t s daral says:

    पचास के होते होते मनुष्य का जीवन अपने आप ही बदल जाता है .बच्चे बड़े होकर स्वतंत्र हो जाते हैं . सही कहा , कुछ पाने की लालसा भी ख़त्म होने लगती है .
    मोह माया के जाल से धीरे धीरे निकलना ही सही है .
    सार्थक चिंतन .

  9. Digamber says:

    उद्देश हीन हो के जीना … या कुछ अलग से उद्देश्य ले के जीना जिसकी प्राप्ति या न प्राप्ति से अवसाद न हो …
    ७५ की आयु के बाद लिया वानप्रस्थ भी तो किसी न किसी उद्देश्य के लिए ही है … हां दिशा बदलना ज्यादा उपयोक्त है एक समय के बाद … मुझे ऐसा लगता है …

  10. सही है..अपना वर्चस्व स्थापित करने की इच्छा सिर्फ क्लेश ही देती है…
    उम्दा आलेख

  11. परिवार में, समाज में, सभी क्षेत्रों में अपनी सत्ता की चाहत को अपने मन से निकाल देना ही उद्देश्‍य रहित जीवन है।

    …..बहुत सार्थक चिंतन…एक उम्र के बाद सांसारिक उत्तरदायित्वों से सन्यास लेकर निश्चिंत होकर जीने की कोशिश करनी चाहिए.

  12. सच लिखा है आपने , आपने वर्चस्व के लिए ही सारी लड़ाई होती है चाहे घर हो , समाज हो या फिर राजनैतिक क्षेत्र हो. हर कोई आपने हाथ में ही रिमोट रखना चाहता है. आपकी कही बात इतनी गहरी है कि अगर उसको समझ कर कुछ लोग ही अमल करें तो धीरे धीरे इस समाज का स्वरूप ही बदल जाएगा . काश ऐसा हो सके.

  13. आपसे बहुत अधिक सहमत हूँ, अधिक उद्देश्य भारसम हो जाते हैं, जीवन की गति अवरुद्ध कर देते हैं।

  14. kshama says:

    Mai aajkal uddesh rahit jeewan jee rahee hun,lekin mujhe to bilkul aanand nahee aata! Behad mushkil aur na mumkin lagta hai aisa jeewan!

  15. आज हम जिसे सार्थक कहते हैं कल वह निरर्थक हो जाता है , जीवन के विविध रंग

  16. पूरी तरह सहमत …..ऐसा जीवन प्रवाहमयी सा लगेगा …..सांसारिक नाप तौल से कुछ अलग ….

  17. आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार o9-08 -2012 को यहाँ भी है

    …. आज की नयी पुरानी हलचल में …. लंबे ब्रेक के बाद .

  18. यहाँ एक बात कहना चाहूँगा आपने जिसे साध लिया वह सच नहीं हो जाता किन्तु आप तो खरे उतरे अपने कथन और मापदंड पर

  19. इस सब से बचने के लिये अपने को कहीं तो डाइवर्ट करके व्यस्त रहना पड़ेगा .जिसकी जिसमें रुचि हो. मुझे तो लिखना ,पढ़ना अच्छा लगता है: और दर्शक बन कर बदलती दुनिया के रंग देखना .
    सब अपने-अपने ढर्रे से लगे हैं ,ये संतोष कोई कम है !फिर क्यों हम बीच में दखलंदाज़ी करने उलझन में फँसें !
    हमने तो रियायरमेंट के बाद से ही यह शुरू भी कर दिया है .

  20. डॉक्टर दी,
    भगवान श्रीकृष्ण ने भी गीता में यही कहा है कि हमारी सारी जीवन गाथ पहले ही लिखी जा चुकी है और हमें केवल कर्म ही करते रहना है, निष्काम कर्म.. समस्याएँ तब प्रारम्भ होती हैं जब हम स्वयं को ही अपना भाग्य विधाता समझने का भ्रम पाल लेते हैं…
    जैसा मनोज जी ने कहा आपके विचार एक नई सोच को जन्म देते हैं!!

  21. Nidhi Tandon says:

    प्रयोजन विना मंदों अपि न प्रवर्तते ……तो बिना उद्देश्य के कैसे संभव है ..जी पाना

  22. बात आपकी सही है .एक उम्र के बाद बस यह सोचें मैं क्या दे सकता हूँ घर को समाज को राष्ट्र को अलबत्ता उद्देश्य न होना भी एक सार्थक उद्देश्य तो कहलायेगा ही .कृपया यहाँ भी पधारें –
    बृहस्पतिवार, 9 अगस्त 2012
    औरतों के लिए भी है काइरोप्रेक्टिक चिकित्सा प्रणाली
    औरतों के लिए भी है काइरोप्रेक्टिक चिकित्सा प्रणाली

  23. उद्देश्‍य रहित जीवन, एक आनन्‍द का जीवन होगा। जब आप किसी भी उद्देश्‍य के लिए कोई लक्ष्‍य निर्धारित नहीं करेंगे। जब आप किसी भी उत्तरदायित्‍व के लिए स्‍वयं को सत्ता-संघर्ष में नहीं उलझाएंगे। ह‍मारे बाद भी यह दुनिया ऐसे ही चलेगी तो हम क्‍यों चिन्‍ता करें कि हमारे नहीं रहने से कुछ अहित हो जाएगा। मैंने तो अब निश्‍चय किया है कि अपने जीवन को उद्देश्‍य रहित बनाऊँगी। अब कोई चाहत शेष नहीं। अधिकार की कोई बात नहीं, केवल अपने कर्तव्‍य को पूरा करने की ईच्‍छा ही प्रमुख होगी। जितना छोड़ सको, छोड़ दो, नहीं तो एकसाथ छोड़ने में कठिनाई होगी। स्‍वयं को आडम्‍बरों से रिक्‍त करने की ओर ध्‍यान देना है। प्रत्‍येक व्‍यक्ति के लिए केवल प्रेम को ही महत्‍व देना है। अब मांगना कुछ नहीं है, अपनी मर्जी थोपना भी नहीं है, बस दुनिया को इसी प्रेमभाव से चलने दो।
    बात आपकी सही है .एक उम्र के बाद बस यह सोचें मैं क्या दे सकता हूँ घर को समाज को राष्ट्र को अलबत्ता उद्देश्य न होना भी एक सार्थक उद्देश्य तो कहलायेगा ही .कृपया यहाँ भी पधारें –
    बृहस्पतिवार, 9 अगस्त 2012
    औरतों के लिए भी है काइरोप्रेक्टिक चिकित्सा प्रणाली
    औरतों के लिए भी है काइरोप्रेक्टिक चिकित्सा प्रणाली

  24. sugya says:

    दीदी,
    उद्देश्यहीन जीवन में तो ट्राफिक और भी अधिक है, शायद प्रतिस्पर्धा भी!! जिसे देखो लक्ष्यों के नित-नए सिरे पकडता है छोडता है बंजारे सा आगे बढता रहता है। सार्थक जीवन तो दृष्टिकोणों पर निर्भर करता है एक दृष्टि से निर्थक सा लगता कार्य दूसरी दृष्टि से पूर्णतः सार्थक लगता है। लक्ष्य भी सापेक्ष है। निरपेक्ष जीवन हो ही नहीं सकता। निर्लेप रहा जा सकता है किन्तु यह कठोर तप है।

    • AjitGupta says:

      सुज्ञ जी, आपका चिन्‍तन हमेशा नए द्वार खोलता है। मैं प्रयास कर रही हूं कि आसक्ति रहित कार्य करूं। कितना सफल होती हूँ कह‍ नहीं सकती। लेकिन कोशिश जरूर रहेगी कि जहाँ भी प्रेम में व्‍यवधान आए, अपना अहम् त्‍यागने की।

  25. आपका निश्चय कठोर जरूर है, मगर ठीक है…

  26. समः शत्रौ च मित्रे च तथा मानापमानयोः ।
    शीतोष्णसुखदुःखेषु समः सङ्गविवर्जितः ॥

  27. […] के नियमित स्तंभ ‘ब्लॉगवाणी’ में अजित गुप्ता का कोना उद्देश्य के बिना VN:F [1.9.20_1166]सितारों पर […]

  28. Kailash pareek khandela says:

    आपके कई ब्लॉग पढ़े | हृदय से निकले भाव (विचार) ही हृदय को स्पर्श कर सकते हैं | सहज,
    सुन्दर, सारगर्भित अभिव्यक्ति के लिए साधुवाद |

  29. बहुत मुश्किल से यहाँ लिन्क खुला। आस्क्ति रहित प्रयास कभी असफल नही होते। लगी रहें। शुभ्कामनायें।

  30. उद्देश्य रहित जीवन में भला कैसा सुख..
    मुझे लगता है कि लालच से तो दूर रहना
    चाहिए, लेकिन कुछ तो जीवन में टारगेट
    होना ही चाहिए..

    सब कुछ छोड़ देने का मतलब ये नही लगता कि
    अब जो होना था हो गया, बस अंत समय का इंतजार
    करें….. मै थोड़ा कन्फ्यूज हूं….

  31. pallavi says:

    शायद आप ठीक ही कह रहीं है, सारा खेल ही सत्ता का है। यदि इसका लोभ ख़त्म हो जाता है, तो बहुत ही अच्छी बात है। लेकिन यदि ख़त्म नहीं भी हुआ थोड़ा कम भी हो गया तो भी शायद रिश्तों में दरार आना या आपसी मतभेद में कमी लायी जा सकती है सार्थक एवं विचारणीय आलेख।

  32. आपके विचार से सहमत । कोई बी भौतिक उद्देश्य अब ना हो यह सही है परंतु हमें ऐसे आनंद की खोज करनी होगी जो शाश्वत हो और यह तभी मिलेगा जब हम अपनी अहंता को खो दें । अहं के मिटते ही सत्ता की होड से हम अलग हो जायेंगे ।

  33. s says:

    thank u 4 helping me in my speach.

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