अजित गुप्ता का कोना

साहित्‍य और संस्‍कृति को समर्पित

माइण्ड सेट

Written By: AjitGupta - May• 29•16

पत्नी घर आज प्यारा बिटवा चला……. यह विदाई गीत बन जाये तो? नहीं पचा पाएंगे ना। हमें तो यही गीत सुनने की आदत है – पी के घर आज प्यारी दुल्हनिया चली…..। इसी सोच से हमारा जीवन बना है। जन्म के साथ ही हमें घुट्टी में ये ही पिलाया गया है और इसे हम कहते हैं माइण्ड सेट।
लड़की को विवाह करके अपने पति के घर जाना ही है, सदियों से यह हमारा माइण्ड सेट है।
माता-पिता पूजनीय होते हैं और इनकी सेवा करना संतान का धर्म है, सदियों से यह हमारा माइण्ड सेट है।
लड़की का कन्यादान किया जाता है, इसकारण वह पति के अधीन रहती है, सदियों से यह हमारा माइण्ड सेट है।
ऐसे ही अनेकानेक विचार जैसे परिवार में माँ का स्थान सदैव पत्नी से बड़ा होता है, बड़े सदैव सम्माननीय होते हैं, पति की आयु-कद-शिक्षा पत्नी से अधिक होती है आदि आदि हमारे मस्तिष्क में संस्कार रूप में रोपित कर दिये गये हैं। जब इन सबके विपरीत परिवर्तन आता है तब हमारे मन में भूकम्प सा आ जाता है। दुनिया तेजी से बदल रही है, हम वैश्विक होते जा रहे हैं। माइण्ड सेट में टकराव होने लगे हैं। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, इस विचार को भी धता बताने का प्रयास हो रहा है और पूर्ण स्वतंत्रता की चाहत मनुष्य के मन में जगने लगी है। अच्छा क्या है और बुरा क्या है, विवाद का विषय यह नहीं है, बस बंधन तोड़ने की जिद हावी होने लगी है। पश्चिम के दर्शन से हम आकर्षित हो रहे हैं। हमें उनकी स्वतंत्रता, उनकी मोह जनित कर्तव्य से परे दुनिया अच्छी लगने लगी है। हमने अचानक ही घोषित कर दिया कि हम अब स्वतंत्र हैं, पत्नी ने कहा कि मैं तुम्हारी अनुगामिनी नहीं हूँ, संतान ने कहा कि हम तुम्हारे प्रति कर्तव्य परायण नहीं बन सकते, छोटों ने कहा कि बहुत हो गया बड़ों का सम्मान, पत्नी ने कहा कि घर अब सास का नहीं मेरा है, ऐसे सारे ही माइण्ड सेट तितर-बितर होने लगे।
सारा समाज सदमें में आ गया। हर परिवार चोटिल होने लगा। व्यक्तिगत रूप से एक-एक व्यक्ति पीड़ित होने लगा। पुरुष वर्ग ज्यादा आहत हुआ, उसके हाथों से सारा संसार फिसलने जो लगा था। महिलाओं के विरोध में उसने शब्द बाणों की पिटारी खोल दी, बलात्कार की बाढ़ आ गयी और भारत से जैसे कन्याओं को समाप्त करने का ही बीड़ा उठा लिया गया हो, ऐसा प्रतीत होने लगा। माता-पिता भी असुरक्षित हो गये, संतान भी कर्तव्यबोध से भागने के कारण हीनभावना से ग्रसित होने लगी। बड़े और छोटे का भेद मिटने से आपसी रिश्तों में खटास आ गयी। यह सब हुआ माइण्ड सेट के कारण। अचानक आये बदलाव के कारण। यदि ये ही बदलाव क्रमश: आता तो इतनी उथल-पुथल नहीं मचती। इसलिये अभी भी समय है, हम अपना माइण्ड सेट को हिलाना शुरू कर दें जिससे हम सुखी होने की ओर कदम बढ़ा सकें। हम अकेले आये थे और अकेले ही जाएंगे, इसलिये प्रेम के बंधन तो बनाइये लेकिन कर्तव्य के बंधन से किसी को ना बांधे। फिर सुबह होगी विश्वास कीजिये, लेकिन अभी जो परिवर्तन आ चुका है, उसे स्वीकार करना सीखीये। नहीं तो सदा की तरह भारत सुखी होने के इंडेक्स में अन्तिम पायदान पर ही खड़ा मिलेगा।

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