अजित गुप्ता का कोना

साहित्‍य और संस्‍कृति को समर्पित

मैंने माँ-पिता से क्‍या सीखा?

Written By: AjitGupta - Sep• 05•15

प्रथम गुरु माँ होती है। मैंने माँ से क्‍या सीखा? माँ के बाद पिता गुरु होते हैं। मैंने पिता से क्‍या सीखा? देखें आज आकलन करें। मेरे पिता दृढ़ निश्‍चयी थे, उन्‍हें मोह-ममता छूते नहीं थे। हर कीमत पर अपनी बात मनवाना उनकी आदत में शुमार था। घर में उनका एक छत्र राज था। माँ उनके स्‍वभाव को सहजता से लेती थी। लेकिन घर में क्‍लेश ना हो इस बात से डरती भी थी। हम से बात बात में कहती थी कि तेरे पिता क्‍लेश करेंगे तो तुम थोड़ा डरो। हर पल हमें इस डर का हवाला दिया जाता था। तो हमने हमारी माँ से डरना सीखा।

घर में पिता के कारण कैसा भी तूफान आ जाए लेकिन हमने अपनी माँ के आँखों में कभी आँसू नहीं देखे। ना वे हमारे सामने कभी रोयीं और ना ही अपनी हमजोलियों के सामने। जैसी परिस्थिति थी उसे वैसा ही स्‍वीकार कर लिया। हमने अपनी माँ से यही सीखा कि कैसी भी परिस्थिति हो आँसू बहाकर कमजोर मत बनो।

अपने नौ बच्‍चों के लालन-पालन में कभी भी माँ ने अपेक्षाएं नहीं की। जो घर में उपलब्‍ध था उसी से सभी को पाला। माँ ने हम पर कभी हाथ उठाया हो, याद नहीं पड़ता। हमने माँ से यही सीखा कि अपेक्षाएं ज्‍यादा मत पालो और कभी भी बच्‍चों पर हाथ मत उठाओ।

पिताजी घर की बागडोर अपने हाथ में रखना चाहते थे इसलिए माँ के हाथ में चार पैसे भी उन्‍हें मंजूर नहीं थे। मामा के घर से मिलने वाले चार पैसे भी वे माँ से ले लेते थे। माँ को हमने कभी पैसे का लोभ करते नहीं देखा। हमने माँ से यही सीखा कि पैसे का मोह मत करो। यदि पिता अपने हाथ में रखना चाहते हैं तो ठीक है, उन्‍हें दे दो बस शान्ति रखो।

खाने-पीने की घर में कभी कमी नहीं रही। लेकिन माँ सादगी में ही जीती रहीं। उसकी आवश्‍यकताएं सीमित ही रहीं। दूध-दही, घी-बूरा, फल-मेवा जिस घर में भरे रहते हों, वहाँ कोई लालसा नहीं।  वे कहती कि मुझे हरी मिर्च का एक टुकड़ा दे दो, मैं उससे ही रोटी खा लूंगी। हमने माँ से यही हरी मिर्च के साथ रोटी खाना सीखा। कोई लालसा मन में नहीं उपजी।

साल में दो साड़ी पिता लाते और दो ही मामा से मिल जाती और माँ का गुजारा आराम से हो जाता। हमने कभी उन्‍हें चमक-धमक वाली साड़ी में नहीं देखा। कभी जेवर से लदे नहीं देखा। हमने माँ से यही सीखा कि जितना वैभव कम हो उतना ही अच्‍छा।

हमने माँ से एक ऐसा कर्म सीखा है जो शायद हमें नसीब ना हो। पिता की अर्थी बंधी थी, माँ ने कहा कि मेरे राम गए और अपनी साँसों को विराम दे दिया। मैं ऐसी माँ को नमन करती हूँ।

जब घर में दबंग पिता हों तब वे प्रथम और अन्तिम गुरु बन ही जाते हैं। पिता हमारे दृढ़ निश्‍चयी थे। जो निश्‍चय कर लिया उसे करना ही है। गाँव में बचपन बीता लेकिन गाँव की कूपमण्‍डूकता पसन्‍द नहीं। निश्‍यच किया कि दिल्‍ली में शिक्षा होगी और अपने निश्‍चय को पूर्ण किया। हमने पिता से दृढ़ निश्‍चय सीखा लेकिन माँ का डर हमें पिता की तरह जुनूनी नहीं बना पाया।

पिता ने जीवन में कभी झूठ का सहारा नहीं लिया। वे कहते कि सत्‍य, सत्‍य है, चाहे वह कटु ही क्‍यों ना हो। बस सत्‍य ही बोलो। यह गुण हमने उनसे हूबहू सीखा। कटु सत्‍य से भी गुरेज नहीं रख पाये।

पिता का जीवन अनुशासन से पूर्ण था। दिनचर्या से लेकर जीवन के प्रत्‍येक आयाम में अनुशासन की आवश्‍यकता वे प्रतिपल बताते थे। इतना कूट-कूटकर अनुशासन उन्‍होंने दिया कि आज थोड़ी सी भी बेअदबी बर्दास्‍त नहीं होती। हमने पिता से अनुशासन सीखा।

हमारे पिता की बहुत बड़ी चाहत थी कि मैं वाकपटु बनूं, तार्किक बनूं। मैंने तार्किक बनने का प्रयास किया और यह गुण उनकी इच्‍छा से सीखा।

जब उनका अपना सा नहीं होता था तो वे बहुत रौद्र रूपी हो जाते थे, लेकिन माँ शीतल रहती थी। इसीकारण मुझमें एक आवेग आता है लेकिन फिर माँ का दिया हुआ शान्‍त भाव हावी हो जाता है। इसलिए मैंने पिता से आवेग सीखा लेकिन उसपर शीतलता के छींटे माँ के कारण पड़ गए।

ऐसे ही न जाने कितने गुण-अवगुण हमने हमारे प्रथम गुरु से सीखे। आज उनके कारण जीवन सरल बन गया है। बस माता-पिता दोनों को नमन। शिक्षक दिवस पर उन्‍हें स्‍मरण।

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6 Comments

  1. वाकई उनसे मिली हर छोटी बड़ी सीख जीवन के पड़ाव में काम आती है । सार्थक विचार

  2. Dr Kiran Mala jain says:

    मेरे प्रथम गुरु भी यही माँ ,यही पिता थे ,पर शायद सात भाइयों के बाद मुरादन मिली बेटी होने के कारण ज़्यादा लाड़ प्यार मिला तो जरासी भी रुखाई मिलने पर ही आँखो मे आँसु छलक आते है ।सच ,ईमानदारी ,अनुशासन ,द्रडता निडरता सब संस्कार हमें घुट्टी मे मिले ,वे आज भी क़ायम है।जो २४ साल हमने हमारे पिता जी के अनुशासन और मार्गदर्शन मे बिताये है वे ही हमारा स्वर्णिम काल था ,उसी की वजह से हम इस मुक़ाम पर है व स्वस्थ है ,दोनो को शत शत नमन !!!

  3. माता पिता जीवन के प्रथम और श्रेष्ठ गुरु होते हैं जिनकी दी हुई शिक्षा हम आजीवन नहीं भूल पाते हैं…

    • AjitGupta says:

      आभार कैलाश शर्मा जी, आपका मेरे ब्‍लाग पर स्‍वागत है।

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