मानवीय रिश्ते एक-दूसरे के पूरक होते हैं। हर पल हमें एक-दूसरे की आवश्यकता रहती है। लेकिन कभी ऐसा लगता है कि फला व्यक्ति हमें यूज कर रहा है। अर्थात हमारा उपयोग अपने स्वार्थपूर्ति के लिए कर रहा है। कई बार इस सत्य को आप जानते भी हैं लेकिन फिर भी आप यूज होते हैं। पति और पत्नी दोनों प्रेम से रहते हैं, लेकिन कभी पत्नी के मन में यह विचार अंकुरित हो जाता है कि मेरा पति मुझे यूज कर रहा है और कभी पति के मन में बात घर कर जाती है कि पत्नी मुझे यूज कर रही है। ऐसे ही कभी बाप-बेटों के सम्बन्ध में भी होता है तो कभी माँ-बेटी के सम्बन्धों में भी। वर्तमान में टूटते-बिखरते रिश्तों के काल में यह बात अधिक अनुभव में आती है।
पति के रिश्तेदार आने वाले हैं, तब उसका व्यवहार अचानक ही बदल जाता है ऐसे ही जब पत्नी के रिश्तेदार आने वाले होते हैं तब भी उसका व्यवहार पति के प्रति अचानक ही बदल जाता है। कभी-कभी तो इस बात का पता नहीं चलता लेकिन कभी कोई अन्य इस बात को इंगित करा देता है तब लगने लगता है कि अरे हम तो यूज हो रहे हैं। ऐसे ही बेटा, बाप से मिलने बरसों नहीं जाता लेकिन अचानक ही जरूरत पड़ने पर पिताजी के प्रति व्यवहार बदल जाता है। तब पिताजी जानते हैं कि बेटा मतलब के लिए आया है लेकिन वह यह सोचकर चुप रह जाते हैं कि आया तो सही। उन्हें समझ आता है कि बेटा मुझे यूज कर रहा है लेकिन उन्हें बर्दास्त हो जाता है। ऐसे ही कभी माता-पिता बेटों के काम नहीं आते हैं लेकिन बुढ़ापे में उसके पास चले जाते हैं, तब बेटे जानते हैं कि मेरा यूज हो रहा है लेकिन कभी बेटा सुना देता है तो कभी चुप रह जाता है।
कभी आपको आपके मित्र यूज करते हैं तो कभी अन्य रिश्तेदार। अक्सर ऐसा अनुभव में आता है कि आप यूज होते रहते हैं आपको पता ही नहीं चलता। आपका प्रेम भी बना रहता है लेकिन जब कोई इंगित कर देता है तब आपके मन में अविश्वास का अंकुर फूट पड़ता है, बस फिर आप को चाहे उससे सम्बंध तोड़कर हानि ही क्यों ना उठानी पड़े लेकिन आप सम्बंध तोड़ने पर उतारू हो जाते हैं। कभी लगता है कि फला व्यक्ति आवश्यकता से अधिक मधुरता से पेश आता है तब आपको लगता है कि कहीं आपको यूज करने की तो नहीं सोच रहा है लेकिन इस शक के कारण आप मधुरता को खोना भी नहीं चाहते। किसी के काम आना अलग बात है, इसमें आनन्द मिलता है लेकिन कोई हमें यूज कर जाए उससे मन में ग्लानि का भाव पैदा होता है। हम सभी न जाने कितनी बार यूज होते हैं, कितनी बार हमें पता ही नहीं चलता और कितनी बार हमें पता चल जाता है। हम सभी के साथ ऐसा होता है। आप जब किसी विशेष पद पर हो तब तो आपको यूज करने वाले बहुत होते हैं। आप से काम निकलवाया और फिर उनके दर्शन भी दुर्लभ हो जाते हैं। मेरे साथ भी ऐसा बहुत होता है। कई बार तो समझ नहीं आता कि इसका व्यवहार इतना मधुर क्यों हैं लेकिन कभी समझ आ जाता है। पहले जब अनुभव नहीं था तब बहुत बुरा लगता था लेकिन अब आदत पड़ गयी है। कई बार समय रहते समझ आ जाता है तब सामने वाले को भी कोई काम बता देती हूँ, जिससे हिसाब तो बराबर हो जाए। मन में ग्लानि तो नहीं रहे कि हमें सामने वाला यूज करके चले गया। शायद रिश्वत का जन्म भी ऐसे ही हुआ होगा। तू मुझे यूज कर रहा है तो मैं भी तुझे यूज कर लेता हूँ। यही भाव रहता होगा। लेकिन कभी-कभी आपकी मासूमियत को कोई ठगने लगता है तब आपको बहुत पीड़ा होती है। लेकिन आपके अन्दर अच्छाई का कीड़ा आपको ना भी नहीं बोलने देता। ऐसे समय थोड़ी सी समझदारी आपके मन को राहत दे देती है। यदि आप जान गए हैं कि आप यूज हो रहे हैं और यूज होने के अलावा कोई चारा नहीं है तब संयम से काम लें और जितना हो सके उतना अपने आपको बचा लें। ऐसे में रिश्ता भी कायम रहेगा और आपके मन में ग्लानि का भाव भी नहीं आएगा।
ऐसे अनुभव आपके जीवन में भी अनेक बार आए होंगे, आपका इस बारे में क्या विचार है? क्या यह मालूम पड़ते ही कि सामने वाला व्यक्ति आपको यूज कर रहा है, उससे सम्बंध तोड़ लेन चाहिए? या यूज होते रहना चाहिए? या फिर यूज होने की कीमत वसूल लेनी चाहिए? या या या, क्या करना चाहिए?
बात आपकी ठीक है ..ज्यादातर ऐसा देखा जाता है कि इस युजनेस के चलते बहुत से करीबी रिश्ते टूट जाते हैं.परन्तु मुझे तो लगता है कि यदि हम किसी के लिए यूजफुल हैं तो इससे अच्छी बात क्या हो सकती है ?.करता रहे कोई यूज.जब तक हम अपनी किसी हानि के बिना किसी के काम आ रहे हैं अच्छा ही है. मेरे ख्याल से ये इतना मुश्किल भी नहीं होता. बस थोडा सा अपना दिमाग का यूज और दिल बड़ा करना पड़ता है
One statement I keep hearing is – “ab kaam pada to hamaari yaad aayi “… Now if you call somebody without work they will say “na kaam na dhaam bas time waste karte hai”… So it is so difficult to make everyone happy. I agree with Shikha that as long as you are not hurt, it is okey to be useful. Mausi I know you are talking about those opportunist people who only know how to use others and would make a ruckus when they become useful to someone…they are like that rotten apple that spoil all others…they should be tagged ( as we tag pictures on Facebook), so that everyone knows…..
🙂
अरे!… कुछ ऐसा ही मैंने भी कह दिया है… अब देखा कि आप तो पहले ही कह चुके हैं…
सच है जो “सामाजिक होने में भरोसा रखते हैं वे यूज़कर्ता से भयभीत नहीं रहते.”
हमारा यूज होना हमारे लिए अच्छा और बुरा दोनों हो सकता है
संबंधों में पूर्ण पारदर्शिता ही उपाय है।
है अगर मजबूरी ।
तो संयम बहुत जरूरी ।।
इस बात का जवाब बहुत गहरा है अजित जी 🙂
पहला यह कि – हम इन्ही दोस्तों / रिश्तेदारों आदि के साथ क्यों हैं ? क्यों नहीं हम अकेले रहते हैं ? ……. क्योंकि – उनके साथ हमें सुख मिलता है | बेसिकली हम में से हर एक ही , जिन भी रिश्तों में हम हैं – हर एक रिश्ता “अहम्” से शुरू होता है | “मेरा” बेटा, “मेरा” पति , “मेरा” ____
“बेटा” बाद में है , “पति” बाद में है – “मेरा” पहले है 🙂
तो – जब ऐसा है – तो फिर वे भी हमें “मेरी” पत्नी और “मेरी” माँ ही तो मानेगे न ? यूज़ होना और यूज़ करना – कहने सुनने में भले ही अजीब लगता है – परन्तु यह बुनियादी ज़रुरत है जीवन की | यदि हम अपने आप को useless फील करने लगें – तो जीवन के मायने ही न रह जायेंगे – लगेगा कि अब तो हमारा जीना ही व्यर्थ ( useless ) है |
रही बात किसी के आने से बर्ताव में ऊपरी बदलाव आने की – तो – एक इन्सान की शक्ति सीमित ही है | उसका ध्यान दूसरी ओर होगा – तो पहली ओर वह उतना ध्यान नहीं ही दे सकता | इसमें यूज़ कने जैसी कोई बात ही नहीं होती | प्रेम सिर्फ ध्यान देना ही नहीं है – वह एक हो जाना है | फिर न यूज़ होने जैसी कोई बात रह जाती है, न यूज़ करने जैसी | 🙂
उत्कृष्ट चिंतन…
यूज़ होते रहना भी एक कला है .सब कुछ जानते हुए भी व्यक्ति स्वभाव की विनम्रता कहो या दब्बू पन के चलते दृष्टा बना साक्षी भाव से सब कुछ देख रहा होता है .लुटता रहता है ,पिटता रहता है .संस्कार गत भीरुता भी होती है यूज़ होते रहने की .एक कलाकार भी अन्दर होता है जो ठाहाका लगाता है सामने वाला समझता है ‘इसे ‘
नहीं मालूम ये छला जा रहा है .छला गया छलने वाले के बारे में भी यही सोचता है .ये ‘गोबर गणेश’ समझता है मुझे कुछ नहीं मालूम .यही है सारा खेल .वीरुभाई सी ४ ,अनुराधा ,कोलाबा , नेवल ऑफिसर्स फेमिली रेज़िदेंशियल एरिया (नोफ्रा ) नेवी नगर, मुंबई-४००-००५
कृपया यहाँ भी पधारें –
रक्त तांत्रिक गांधिक आकर्षण है यह ,मामूली नशा नहीं
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
आरोग्य की खिड़की
आरोग्य की खिड़की
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/2012/04/blog-post_992.html
हर कोई किसी न किसी को कहीं न कहीं यूज़ तो करता ही है..क्युकी बिना किसी को किसी के यूज़ किये काम चलने वाला नहीं. जब तक उसके हमें यूज़ करने से हमारा कोई नुक्सान नहीं हो रहा तो यूज़ होने में कोई बुराई भी नहीं है…आखिर कभी न कभी हम भी तो किसी न किसी को अपने मतलब क लिए यूज़ करते हैं या मदद लेते है. मदद लेना भी तो यूज़ करना ही हुआ न. बस भाव बदल जाते हैं. जब हमें पता है की सामने वाला हमें यूज़ कर रहा है अपने भाव उसके प्रति हम निर्मल रखें और जहाँ तक हमारा कोई नुक्सान भी नहीं तो खुद को यूज़ होने ही दिया जाये. आखिर ये संसार का चलन है…और संसार ने ऐसे ही चलना है.
काश हमें कोई यूज करता रहे …
अपनों के काम ही आयेंगे ! हर्ज़ क्या है ??
हाँ मूर्ख बनना बेवकूफी है …
शुभकामनायें आपकू !
मेरे भी मन की बात है… आपके दो वाक्यों में.
यूस हो रहे हैं, यह तो संतोष की बात ही है.
अगर वास्तव में किसी को ज़रूरत है और वह हमसे सुविधा उठा लेता है तब ठीक है .लेकिन औचित्य का ध्यान रखे बिना कोई अपना मतलब साधता रहे तो सावधान हो जाना चाहिये .
कम से कम हम किसी के काम तो आ रहे हैं मगर एक हद तक
रिश्ते तो को तोड़ना तो हल नहीं कहा जा सकता…पर हाँ अगर कोई सच अपने स्वार्थ पूरे करने के लिए ही हमसे जुड़ा है तो पता चलने के बाद आगे और यूज़ न करने दें हम अपने आपको……
भर्तृहरि ने चार प्रकार के मनुष्य बताये –
१. मेरा काम बने या न बने, दूसरे का बनना चाहिए.
२. मेरा काम भी बने और दूसरे का भी भला हो.
३. मेरा काम बनना चाहिए, दूसरे का बने न बने.
४. मेरा काम बेशक न हो, लेकिन दुसरे का नहीं बनना चाहिए.
सम्बंधित दोनों पक्षों का इस आधार पर वर्गीकरण हो सकता है और तदनुसार यूज़ करने ना करने का निर्णय ले सकते हैं, मैं ऐसे ही कोशिश करता हूँ|
आपने यूज़ होने\करने के बारे में पूछा है, मिसयूज़ करना तो आदर्श स्थिति में कभी भी ठीक नहीं लेकिन मिसयूज़ होने वाली स्थिति कभी कभी टालनी बहुत मुश्किल है लेकिन करनी चाहिए, & sooner the better.
पर ये भी सच है कि कई बार यूज़ होना भी अच्छा लगता है ☺
और कई बार यूज़ होना न्यूज़ बन जाता है…
और तब बिलकुल अच्छा नहीं लगा. 🙁
लगा= लगता
यदि किसी अच्छे काम के लिए यूज़ हो जाएँ तो बुरा नहीं लगता , मगर जब यह लगता है कि आप जिसका भला कर रहे हैं वह यह सोचकर खुश हो रहा है कि आपको बेवकूफ बनाया जा रहा है तो अखरता जरुर है .
.कई बार नकारात्मक सोच होने पर मन खुद को धिक्कारता भी है कि हम भी तो दूसरों को जरुरत होने पर ही पूछते हैं ….
एक संतुलन आवश्यक है !
इंसान जानते बूझते हुए कभी यूज़ नहीं होते। लोग वही करते हैं जो वे करना चाहते हैं। कुछ लोगों को दूसरों के लिये जान देने में भी मज़ा आता है जबकि कुछ के लिये सरकारी सड़क पर किसी को रास्ता देना भी ऐसा लगता है मानो कोई जागीर दे दी हो। जिन लोगों को शिकायत की आदत सी हो जाती है उन्हें हर कोई अपना इस्तेमाल करता नज़र आता है। यूज़ होने से बचने का उपाय अपनेपन में है। अपना समझेंगे तो देने को दिल करेगा, पराया है तो यूज़ करता लगेगा भले ही सच्चाई इसके एकदम उलट हो।
अनुराग जी आप सही कह रहे हैं। लेकिन कभी लगता है कि कुछ लोग आपके कंधे को सीडी बनाकर चढ़ जाते हैं और फिर उस ठोकर मार देते हैं। कई बेटों को भी देखा है कि माता-पिता को पूछते तक नहीं, लेकिन जब जरूरत पड़ती है तब उनका उपयोग कर लेते हैं।
लेन-देन तो बना ही रहना चाहिए रिश्तों में, लेकिन दोनों पक्ष को लगे कि वह फायदे में है.
ज़माना बदल गया है…
पहले रिश्ते प्यार करने के लिेए होते थे चीज़ें इस्तेमाल के लिए,
अब रिश्ते इस्तेमाल के लिए हैं और चीज़ें प्यार के लिए…
जय हिंद…
आपकी बात सौ फीसदी सही है।
मुझे भी ये बात बेहद पसंद आयी…
ममा… एक शिकायत… आपने मुझे बताया ही नहीं अपने इस ब्लॉग के बारे में… वो तो आज शिखा के ब्लॉग पर टहलते हुए पता चला… कितने अच्छे अच्छे और मायने वाले आर्टिकल्स लिखे हैं आपने तो… और मुझे बताया भी …….सुबुक सुबुक…. सुबुक….सुबुक… (फुक्का फाड़ के)… .सुबुक सुबुक… अभी तो मैंने टाईट्ल्ज़ ही देखे हैं और एक सरसरी नज़र देखी है… अब रेगुलर आऊंगा… इसमें फोल्लो कैसे करते हैं? या आप हमेशा मुझे लिंक ज़रूर मेल कर दिया करिए…
ना… ना… मेल मत करिए… नीचे दिख गया है मैंने Notify me of new posts by email से फौलो कर लिया है…
महफूज, मेरा ब्लाग तो शुरू से ही है, बस अब वेबसाइट पर आ गयी हूं। मैंने तो ढोल नगाड़े सभी पीटे थे, आजकल तुम्हारी ही नजर नहीं है।
ममा… एक शिकायत… आपने मुझे बताया ही नहीं अपने इस ब्लॉग के बारे में… वो तो आज शिखा के ब्लॉग पर टहलते हुए पता चला… कितने अच्छे अच्छे और मायने वाले आर्टिकल्स लिखे हैं आपने तो… और मुझे बताया भी नहीं …….सुबुक सुबुक…. सुबुक….सुबुक… (फुक्का फाड़ के)… .सुबुक सुबुक… अभी तो मैंने टाईट्ल्ज़ ही देखे हैं और एक सरसरी नज़र देखी है… अब रेगुलर आऊंगा… इसमें फोल्लो कैसे करते हैं? या आप हमेशा मुझे लिंक ज़रूर मेल कर दिया करिए…
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यूज़ हों तो कोई बात नहीं बस मिस यूज़ नहीं होना चाहिए …. आज रिश्तों में स्वार्थ का भाव बढ़ता जा रहा है फिर भी जब तक हमारी अहमियत है तब तक ही जीवन सार्थक है वरना लगेगा कि यह जीवन ही व्यर्थ है … लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं कि कोई बेवकूफ बना कर अपना काम निकालता रहे ….
पसंदीदा बात..
एक आदर्श परिवार में कोई किसी को यूज नहीं करता . यह अलग बात है की आजकल ऐसे परिवार मिलते ही कितने हैं .
लेकिन ऑफिस में ऐसे हालत अक्सर पैदा होते रहते हैं . हमें तो रोज ही ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ता है . लेकिन फिर हमारा काम ही मानव सेवा है . इसलिए इन हालातों से निपटना भी सीख लिया है . अपना डिस्क्रिशन यूज करना पड़ता है .
जहाँ प्रेम हो विश्वास हो वहाँ यूज कोई किसी को नही करता क्योंकि संबंध आपसी प्रेम पर ही चलते हैं और रोजमर्रा के जीवन मे एक दूसरे की जरूरत हर किसी को होती है नही तो समाज का निर्माण ही नही होता ………यूज तभी होता है इंसान या तभी करता है जब संबंध दिखावे के होते हैं या बाहर का व्यक्ति हो कोई और अपने कार्य के लिये आपके पास आया है तो आपको पता होता है कि वो हमारे पास अपने काम से ही आया है क्योंकि बेमतलब कोई किसी के पास नही जाता ना ही किसी का काम करता तो उसे यूज करना कहो या ना कहो मगर दुनिया ऐसे ही चलती है ………बस थोडी सी समझदारी से काम लेना पडता है जिससे खुद को कोई नुकसान ना हो यदि हम भी उम्मीद लगा कर बैठ जायें आज मैने इसका काम किया है तो कल वो भी जरूर करेगा और ना करने पर कह दें कि उसने हमे यूज किया तो ये हमारी सोच है उसकी नही ………क्योंकि उसने कोई वादा नही किया वो तो हमारे पास आया ही अपने काम से है इसलिये हमें ही इतना समझदार बनना होगा कि हमारा कोई व्यक्तिगत नुकसान ना हो फिर चाहे वो आर्थिक हो या सामाजिक ।
वैसे सभी एक दूसरे को यूज करते हैं और अगर इससे किसी का भला होता है तो शिकायत भी नहीं होती. लेकिन जब कोई यूज करने के बाद और मतलब निकलने के बाद आँखें चुराने लगे तो बुरा ज़रूर लगता है. और आजकल अक्सर ऐसा ही होता है. बहुत सार्थक आलेख…आभार
वाह…बहुत सुन्दर, सार्थक और सटीक!
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
bahut baar hamara use hota hai, hame pata bhi hota hai…. fir bhi ham kuchh nahi kah pate…
बहुत दिनों बाद ब्लॉग पे आ पाई हूँ….बड़ा अच्छा लगा आपका आलेख पढके!
‘यूज़ करना’ जैसे शब्द तभी आते हैं…जब कोई किसी का जबरदस्ती.. उसके अनचाहे फायदा उठाये…और आजकल अक्सर ऐसा ही होता है.
वरना..ख़ुशी ख़ुशी कोई किसी के काम आए तो उसे यूज़ होना जैसा नहीं लगता है.
रश्मिजी, आप मेरी बात समझ रही हैं। आभार।
बड़ा विकट प्रश्न रख दिया है आपने। इस यूज़ होना करना को मैं बेवकूफ़ बनाना अगर कहूं, तो होते रहता हूं। हां संबंध तो नहीं तोड़े सतर्कता ज़रूर बरती है।
जी बात आपकी सच है लेकिन हम अपने व्यवहार में इससे विचलित होकर बदलाव क्यों करे?
बड़े बूढ़े कह गए हैं, वक़्त पड़ने पर अपने ही काम आते हैं…. यानि अपने यूजफूल होते हैं। व्यवहारिकता का दूसरा नाम ही काम आना है। हाँ यह जरूर देखना है कि कहीं हम ही दूसरों के एकतरफा काम तो नहीं आ रहे और कहीं अपना काम सिर्फ दूसरों के काम आना तो नहीं!
आपकी पोस्ट भी पढ़ी और लोगों के कॉमेंट भी पढे पढ़कर लगा इस विषय में सबका अपना -अपना नज़रिया है और अपनी-अपनी सोच जहां तक मेरा मानना है आपकी लिखी सभी बातें ठीक हैं मगर जहां तक समाबंधों की बात है तो आपसी सम्बन्धों में ज्यादा तर यह ज्ञात हो ही जाता है कि आपका यूस किया जा रहा है या नहीं इसलिए मेरा मानना तो यह है जब तक बिना किसी हानी के संबंध मधुर बने रह सकते है तो यूस होने में कोई बुराई नहीं क्यूंकि कई बार रिश्तों में पारदर्शित दूरी का अहम कारण भी बन सकती है और बरसों से चले आरहे अच्छे समब्न्ध एक ही झटके में टूट सकते हैं इसलिए उससे तो अच्छा है कि यह जानते हुए भी कि आपका यूस हो रहा है मगर बिना किसी नुकसान के सम्बन्धों में मधुरता कायम है तो मुझे यूस होने में कोई बुराई नज़र नहीं आती।बस सब कुछ निर्भर करता है कि शुरुवात से आपका संबंध किसके साथ कैसा रहा है।
ऐसे अनुभव आपके जीवन में भी अनेक बार आए होंगे, आपका इस बारे में क्या विचार है?
@ अजित जी, लगता है कि आपने इस मनःस्थिति से गुजरने वाले मुझ जैसे ही कई सहृदयों के लिए ये आलेख लिखा है…
अपने सम्बन्ध में मेरा मानना है कि यदि कोई मेरा यूज़ कर भी रहा है तो मुझे इस बात की प्रसन्नता होगी कि मैं अभी यूजफुल हूँ… कोई अवसर तो दे…
अतिथि सत्कार और जरूरतमंद की यथासंभव सहायता बहुत ही प्रिय कर्म है.
क्या यह मालूम पड़ते ही कि सामने वाला व्यक्ति आपको यूज कर रहा है, उससे सम्बंध तोड़ लेन चाहिए? या यूज होते रहना चाहिए? या फिर यूज होने की कीमत वसूल लेनी चाहिए? या या या, क्या करना चाहिए?
@ यदि मुझे पता चलता है कि सामने वाले ने मुझे इस योग्य समझा तो मेरी अपेक्षाएँ खुद से बढ़ जायेंगी … खुद भी सोचने लगूँगा कि कैसे-कैसे अपनी क्षमताओं का यूज़ करूँ. अभी तक तो दो-एक को छोड़कर मुझे मेरा कोई यूज़र नहीं मिला है… हाँ यह सच है कि पारिवारिक संबंधों का निर्वहन एक-दूसरे के सहयोग पर ही हो पाता है. मुझे आपका लेख बहुत पसंद आया. न केवल मार्गदर्शन हेतु अपितु मानवीय स्वभाव पर पुनर्चिन्तन के लिए भी.
प्रतुल जी आप शायद कभी यूज नहीं हुए हैं इसलिए यूजफुल होने पर खुश है, मेरे पास कई उदाहरण है लेकिन निजता का हनन ना हो इसलिए नहीं देना चाह रही।
ब्लॉग बुलेटिन में एक बार फिर से हाज़िर हुआ हूँ, एक नए बुलेटिन “जिंदगी की जद्दोजहद और ब्लॉग बुलेटिन” लेकर, जिसमें आपकी पोस्ट की भी चर्चा है.
डॉक्टर दी,
ब्लॉग-बुलेटिन पर डेढ़ सौवीं पोस्ट लिखते समय आपका लिंक लिया और मुझे लगा कि मैंने इस पोस्ट पर कमेन्ट भी किया है.. अचानक लगा कि नहीं छूट गया है.. कोई बात नहीं..
अंग्रेज़ी के तीन मुहावरे हैं इस पोस्ट में कही गयी बात के लिए:
१. यूज होना २. नाजायज़फायदा उठाना (टेकिंग एडवांटेज) ३. टेकेन फॉर ग्रांटेड
बहुत बारीक सा अंतर है इन तीनों में लेकिन कमोबेश हर कोई इन तीनों अवस्थाओं से गुज़रता ही है..
सर्दियों की रात में पति का पत्नी को पानी गरम करने को कहना पत्नी को फॉर ग्रांटेड लेने जैसा है.. भले ही उस गरम पानी से पति को बर्तन मांजने हों, जो कि पति का एडवांटेज लेने जैसा है.. खैर मजाक से अलग भी, ऎसी अवस्थाएं हमेशा समाज में आये दिन हर किसी के साथ होती रहती हैं.. बुद्धिमानी इसी में है कि व्यावहारिक बनें “होशियार” नहीं और कोई होशियारी करे तो उसको जता देना कि ये हमेशा चलने वाली नहीं..
बहुत ही अच्छा मनोवैज्ञानिक मुद्दा है दीदी!!
ये अक्सर होता है शायद संस्कार कुछ कहने कों रोक देते हैं …
मेरा मानना है एक बार हो और दुबारा फिर हो तो कह देना चाहिए या अलग हो जाना चाहिए … ऐसी परिस्थिति बन्ने नहीं देनी चाहिए …
हम क्यों इन्हें अवसर देते हैं अपने दुरूपयोग का जबकि हम जानते हैं हम हर हल में ठगे जा रहे है कहीं हम इसी बहाने उनके खेल में खुद शामिल हो कर उन्हें अवसर दे कर अपने आपको बपुरा (बेचारा) साबित कर एक अवसर का इंतजार करते हैं जहाँ उनका यूज कर सके.