अजित गुप्ता का कोना

साहित्‍य और संस्‍कृति को समर्पित

पैसे से घर फूंकना

Written By: AjitGupta - May• 15•17

मैंने अपने मोबाइल का प्लान बदलवा लिया है, पोस्टपेड से अब यह प्री-पेड़ हो गया है। 395 रू. में 70 दिन के लिये मेरे पास 2 जीबी डेटा प्रतिदिन हैं और 3000 मिनट कॉल बीएसएनएल पर तथा 1800 मिनट कॉल अन्य फोन पर है। मैं बीएसएनएल का विज्ञापन नहीं कर रही हूँ, बस यह बताने की कोशिश करने जा रही हूँ कि मेरे फोन के पास बहुत डेटा और मिनट हैं। जब शाम को देखती हूँ कि कितना बचा, तो पाती हूँ कि थोड़ा ही खर्च हुआ है लेकिन सारा दिन चिन्ता यही रहती है कि ज्यादा खर्च ना हो जाए? हमारी सम्पत्ती की भी यही स्थिति है, हर पल खर्चे की सोचते हैं कि ज्यादा खर्च नहीं करना है लेकिन शाम के अन्त में जिस प्रकार मेरे मोबाइल का डेटा बेकार हो जाता है वैसै ही यह बिना खर्चे यह सम्पत्ती भी जाया हो जाती है। सम्पत्ती वही है जो आपने खर्च ली है। जिन्दगी सस्ता तलाशते ही निकले जा रही है, बस कैसे भी चार पैसे बच जाएं सारा दिन इसी चिन्ता में घुले जा रहे हैं।
लेकिन दूसरी तरफ यह भी सोच है कि कुछ डेटा तो काम में ले ही लें। मन करता है कि फ्री मूवी ही डाउनलोड कर लें, जिससे 2जीबी का उपयोग हो जाए। जिस पैसे का भविष्य स्पष्ट दिखायी देता है कि खर्च नहीं किया तो आयकर वालों को देना ही पड़ेगा तब हम बिना सोचे समझे खर्चा कर बैठते हैं। तब यह भी नहीं सोचते कि यह खर्चा हमारी मर्यादा को ही छिन्न-भिन्न कर रहा है, लेकिन हम कर लेते हैं। जैसे अभी कुछ लोगों ने किया बीबर का शो देखने चले गये 75000 रू. की टिकट लेकर। बस पैसे को ठिकाने लगाना था तो ऐसी जगह पैसा फूंक दिया जहाँ से जहरीला धुआँ हमारे घर की ओर ही आया। शादी में भी हम यही करते हैं। आयकर से छिपाकर रखे पैसे को फूंकना शुरू करते हैं और सभ्यता व असभ्यता की सीमा ही भूल जाते हैं। उदयपुर में ऐसे तमाशे रोज होते ही रहते हैं, भव्य शादियों में महिला संगीत के नाम पर नृत्यांगनाओं को बुलाने की परम्परा सी बना दी गयी है। ऐसे में असभ्यता की सीमाएं पार होती रहती हैं और परिवार इसके घातक परिणाम को बाद में भुगतता है।
इसलिये आपके सात्विक खर्च के बूते से बाहर का पैसा सुखदायी के स्थान पर दुखदायी हो जाता है। आज देश की सबसे बड़ी समस्या यही है। मैं जब फतेहसागर के पिछले छोर पर मोटरसाइकिल की अन्धाधुंध दौड़ देखती हूँ तब यही लगता है कि यह माता-पिता का नाजायज पैसा है जिसे अपनी जायज संतान को देकर उसके जीवन को अधरझूल में डाला जा रहा है। कहीं इस नाजायज पैसे से तिजोरी में हीरे-जवाहरात भरे जा रहे हैं तो कहीं यह पैसा बीबर जैसे अनर्गल शो में जाया किये जा रहे हैं। पैसा फूंकना अलग बात है और घर फूंकना अलग बात है। पैसे ठिकाने लगाने हैं तो कृत्य और अकृत्य का भान भी हम भुला देते हैं। इसलिये देश में जैसे-जैसे पैसा बढ़ रहा है वैसे-वैसे असभ्यता भी बढ़ रही है। मेरे मोबाइल का डेटा बिना खर्च किये ही बर्बाद हो जाए तो चिन्ता नहीं बस कहीं मैं आलतू-फालतू मूवी डाउनलोड कर अपनी आदतों को गलत राह ना दिखा दूँ. यही चिन्ता है।

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2 Comments

  1. सुना है भारतेन्दु हरिश्चन्द्र अपने पूर्वजों की दौलत,तेल की जगह इत्र से दीपोमाला कर
    ठिकाने लगाते थे.

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