अजित गुप्ता का कोना

साहित्‍य और संस्‍कृति को समर्पित

यह भी बलात्कार का ही मामला है

Written By: AjitGupta - Aug• 22•18

अमेरिका में मैंने देखा कि वहाँ पर हर प्राणी के लिये नियत स्थान है, मनुष्य कहाँ रहेंगे और वनचर कहाँ रहेंगे, स्थान निश्चित है। पालतू जानवर कहाँ रहेंगे यह भी तय है। मनुष्यों में भी युवा कहाँ रहेंगे और वृद्ध कहाँ रहेंगे, स्थान तय है। भारत में सड़क के बीचोंबीच बैठी गाय और सड़क पर चलती भैंस मिल जाएंगी, कुत्ते तो हर कोने में अपना राग बजाते दिख ही जाएंगे। हर घर में बिल्ली सेंध मारने की फिराक में रहेगी और कबूतर आपके घर में घौंसला बनाने के फेर में। गाँव में चले जाइए, बकरी रात को घर के अन्दर बंधी मिलेगी। भारत में हमारी दुनिया एक है। मनुष्यों में भी बच्चे-बूढ़े सब साथ हैं। ना बच्चों के लिये होस्टल को पसन्द किया जाता है और ना ही वृद्धों के लिये ओल्ड एज होम। घर में माँ का शासन चलता है और माँ सबकी पालनहार होती है। हम भोग-विलास के लिये गृहस्थी नहीं बसाते अपितु माता-पिता की सेवा और संतान को संस्कार देने के लिये गृहस्थी बसाते हैं। लेकिन जब से दुनिया एक गाँव में बदल गयी है हम सारी ही व्यक्तिगत-सुखकर परम्पराओं को अंगीकार करते जा रहे हैं। कभी सशक्त हाथ अशक्त हाथ को थामने के लिये होते थे लेकिन आज सशक्त हाथ अशक्त हाथों को धकेलने के लिये काम आने लगे हैं। पूर्व में हम घर का फालतू सामान भी नहीं फेंकते थे, उसके दोबारा उपयोग के बारे में सोचते थे लेकिन आज अपने ही माता-पिता को फेंकने के बारे में सोच लेते हैं।
कल एक तस्वीर वायरल हो गयी, दादी और पोती की। पोती वृद्धाश्रम देखने जाती है और दादी वहीं मिल जाती है। अचानक मिलने की खुशी की जगह समाज का दर्द और शर्म निकल आयी। पोती समझ नहीं पा रही थी कि मेरी दादी यहाँ क्यों है! मुझे तो लगता है कि उस परिवार में कुछ भारतीय संस्कार शेष रहे होंगे जो पोती को बताया गया कि दादी रिश्तेदारी में गयी है। नहीं तो ऐसे परिवारों में नफरत इतनी भरी होती है कि पोती दादी को पहचानती ही नहीं। स्कूल की सहेलियां उसके साथ थी, उसके परिवार का सम्मान जुड़ा था, लेकिन पोती ने दादी को पहचाना और गले मिलकर रोने लगी। अभी तो हम अनेक परिवारों में देख रहे हैं कि बच्चों को दादा-दादी से दूर रखा जाता है, उनके अन्दर प्यार पनपने की जगह नफरत पनपती है और ऐसे बच्चे कभी दादा-दादी को पहचानते तक नहीं।
अब प्रश्न यह है कि क्या बेटा माँ को वापस घर ले जाएगा? क्या माँ वापस जाएगी? क्या बेटे को अक्ल आएगी? क्या माँ को वापस जाना चाहिये? जब हम गृहस्थी बसाते हैं तब पूर्ण समर्पण का भाव रखना होता है जैसे फसल लगाने से पहले दाने को जमीन में समर्पित होना ही पड़ता है। खुद को समर्पित करने पर ही नयी पौध आती है और तभी घर बसता है। हिन्दू परिवार में लड़की को लड़के के घर जाना होता है और लड़के के परिवार को अपना परिवार मानने की सौगंध खायी जाती है। लेकिन इसके विपरीत आज लड़की अपने ससुराल याने लड़के के परिवार को अपना परिवार नहीं मानती, वह कहती है कि यदि तू मेरे परिवार को अपना परिवार माने तो मैं भी मान लूंगी। आजकल स्वार्थ की परम्परा ने जन्म ले लिया है, हम सौगन्ध कुछ लेते हैं और आचरण कुछ करते हैं। जिस प्रकार से लड़कियों का व्यवहार बदल रहा है, उसमें गलत कुछ नहीं है, बस इतना ही है कि यदि आपको लड़के के परिवारजन के साथ नहीं रहना है तो आप विवाह के समय सौगन्ध से मना कर दो। लड़के के साथ अपने घर से विदा होने के बाद ससुराल मत जाओ। लेकिन यह दोहरा रवैया चरित्र हीनता है। आप सौगन्ध किसी बात की खा रही हैं और काम कुछ और कर रही हैं! इसलिये ही आज घर-घर में माता-पिता पर संकट आया हुआ है। वृद्धावस्था सभी की आनी है और इन अशक्त हाथों को सशक्त हाथ की जरूरत पड़ने ही वाली है। क्या हम सभी वृद्धाश्रम में रहने को मजबूर कर दिये जाएंगे? घर से यदि माता-पिता को रद्दी के सामान की तरह उठाकर कबाड़ी को दे दिया जाएगा तो कैसे परिवार चलता रहेगा! पुत्र आँखे बन्द कर केवल अपने भोगविलास की ही सोचता रहे और उसकी पत्नी घर के माता-पिता को उठाकर बाहर फेंक दे तो क्या यह मनुष्यता की श्रेणी में आएगा? यह भी मानवाधिकार का मामला है यह यूँ कहूँ कि यह भी बलात्कार का ही मामला है, तो ज्यादा ठीक होगा।

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