अंतिम कड़ी
कम्बोडिया से वियतनाम जाते समय, केंग नदी पार करनी पड़ती है। बस फेरी में ही जाती है। सुखद आश्चर्य था कि फेरी का नाम विष्णु और राम था। हिन्दुत्व के दर्शन वहाँ प्रमुखता से हो ही जाते थे। एक बात समझ से परे थी कि पूरा देश बुद्धिस्ट है, वहाँ 90 प्रतिशत जनसंख्या बौद्ध धर्म को मानती है लेकिन वहाँ पूर्णतया मांसाहार है। बुद्ध ने तो मांसाहर का ही विरोध किया था। वहाँ जमीन भी बहुत है और पानी भी। लेकिन फिर भी वहाँ की व्यक्ति पूर्णतया मांसाहारी क्यों हैं? यह कैसा बुद्धिज्म है? कीट-पतंग से लेकर साँप तक को खाने वाले लोग कैसे बुद्ध को मानते हैं? चावल वहाँ की प्रमुख उपज है। फलों में केला प्रमुख था जो लम्बाई में ढाई से तीन इंच लम्बा था। अन्दर से हल्के पीले रंग का और सुगन्धित था। बहुत ही स्वादिष्ट था। तरबूज वहाँ बहुत था, भोजन के साथ तरबूज और पाइनएपल हमेशा उपलब्ध रहता था। पपीता भी खूब था और स्वादिष्ट था। भोजन के बाद अधिकतर मिष्ठान्न के स्थान पर फल ही मिलते थे या फिर होता था गुलाबजामुन।
वियतनाम ऐसा देश है जिसने पूर्व में फ्रांस से और बाद में बरसों तक अमेरिका से युद्ध किया है। अमेरिका ने उसे बर्बाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। वियतनाम युद्ध का असर कम्बोडिया पर भी पड़ा। लाखों लोग युद्ध में मरे और लाखों रसायनिक हथियारों की बमबारी के कारण अपंग हुए। लेकिन आज वहाँ के नागरिक पूर्ण राष्ट्रभक्ति के साथ स्वाभिमान पूर्वक अपने देश को उन्नत करने में जुटे हैं। वियतनाम का हमने “हो ची मिन सिटी” देखा। कभी फ्रांसीसियों ने यहाँ राज किया था इसलिए शहर में फ्रांसिसी प्रभाव स्पष्ट देखा जा सकता है। आज भी वहाँ उस दौर के बहुत सुन्दर भवन हैं। वियतनाम युद्ध किस प्रकार से लड़ा गया, उसे दिखाने के लिए “चूं चीं टनल” बनी थी। जंगल में 200 किमी के क्षेत्र में ये टनल बनी हुई है। 1948 में फ्रांस के साथ युद्ध करने में इसे काम में लिया गया था। जब हम वहाँ पहुंचे तो बारिश आ गयी थी। हम सभी ने रैनकोट पहन लिए थे। बरसात में रेनकोट के सहारे हम गाइड के पीछे जंगल में प्रवेश कर रहे थे। जंगल पूरा रबर के पेड़ों से लदा था। गाइड ने एक जगह हमें रोका और घास को हाथ से हटाकर दिखाया कि वहाँ एक लकड़ी का फ्रेम था जिसे ठोकर मारने पर वह उलट गया। गाइड ने पूछा कि यह पिंजरा किसलिए बना है? हमें लगा कि दुश्मन को मार गिराने के लिए होगा। लेकिन नहीं, वह शेर को पकड़ने के लिए था। उस गड्ढे में लोहे के तीर निकले हुए थे। जैसे ही शेर वहाँ पैर रखता, तभी लकड़ी का बना फ्रेम घूम जाता और शेर तीरों से बिंधकर मर जाता। आगे चले तो छोटे-छोटे ढक्कन से ढके गड्ढे मिले जिन में व्यक्ति छिप सकता था। इनको सुरंग से जोड़ा गया था जो धरती के नीचे से एक स्थान से दूसरे स्थान पर जा सकते थे। उन्हीं बेरकों में अस्पताल की व्यवस्था भी थी और कांफ्रेस रूम की भी। बैरको में ही हथियार बनाने के कारखाने थे। जहाँ सैनिक हथियार बनाते थे। बहुत ही रोमांचकारी दृश्य था। सीमित साधनों से कैसे एक राष्ट्रभक्त देश ने युद्ध लड़ा और विजय पायी।
हो ची मीन सिटी खूबसूरत शहर है। एकदम साफ-सुथरा, आधुनिकता से परिपूर्ण। हम वहाँ का पोस्ट-ऑफिस देख रहे थे जो फ्रांसिसियों के काल का था, बेहद खूबसूरत। मजेदार बात यह थी कि वहाँ पोस्ट ऑफिस भी चल रहा था और साथ में बाजार भी। वहाँ का ओपेरा हाउस भी खूबसूरत था। हम सब ऑपेरा हाउस की सीढ़ियों पर बैठकर फोटो खिंचवा रहे थे तभी तेज सायरन की आवाजें आयीं और धड़धड़ाती दो-तीन मोटर-सायकिलें गुजर गयी। उनके पीछे काले रंग की गाडी जो किसी राजनयिक की थी, गुजर गयी। छोटा सा काफिला था जो पलक झपकते ही गुजर गया। ना यातायात रूका और ना ही कोई बेरीकेट्स लगे। वहीं पर हम टहल रहे थे कि चार-पांच लड़के-लड़कियां कुछ बेचते हुए हमारे पास आ गए। उनके पास टी-शर्ट, पर्स आदि थे। हमें लगा कि पता नहीं बाजार जाना हो या नहीं, कुछ यादगार के लिए खरीद लेना चाहिए। भरपूर मौल-भाव किया और सामान खरीदा गया। तभी पास ही बने चर्च से एक युगल निकलकर आया, जिसने अभी-अभी विवाह किया था। बेहद खूबसूरत युगल था। लड़के ने काला सूट और लड़की ने सफेद गाउन पहन रखा था। गाउन सड़क पर लगभग एक फीट तक बिछा हुआ था। वे फोटो खिंचवा रहे थे, हमने भी उनकी फोटो ली।
हमें आखिरकार बाजार में जाने का अवसर मिल ही गया। लेकिन समय सीमित था – केवल एक घण्टा। बड़ा सा चाइना बाजार था, हमने उसके अन्दर घुसना मुनासिब नहीं समझा, बस बाहर की दुकानों से ही खरीदारी कर ली। दुकान पर फिक्स रेट का टेग लगा था तो हम भी निश्चिंत थे। बच्चों के बेहद खूबसूरत कपड़े मिल रहे थे और वो भी वाजिब दाम पर। हमने कुछ खरीद ही लिए। लेकिन वे ही हॉकर वहाँ भी आ गए, फिर उनसे लोगों ने सामान खरीदा। उन हॉकरों को मालूम पड़ चुका था कि ये खरीददारी करेंगे तो हम जहाँ भी जाते थे, वे हमारे पीछे आ जाते थे। यहाँ तक की दूसरे दिन भी होटल के बाहर वे आ गए। हम सब भी उनसे बारबार खरीदारी करते ही रहे। कभी बेहद सस्ते में तो कभी मंहगे में। किसी ने एक चीज की कीमत 8 डॉलर दी थी तो किसी ने उसी चीज की कीमत 3 डॉलर दी। लेकिन वियतनाम की बनी वस्तुओं को खरीदना अच्छा लग रहा था। मजेदार बात यह थी कि वे सारी ही मुद्राएं ले रहे थे। भारत की, थाइलैण्ड का बाथ, अमेरिका का डॉलर। चूंकि वियतनाम की मुद्रा की कीमत एक डॉलर की 21000 डेंग थी तो हमारे लिए हिसाब लगाना बड़ा कठिन था। इसलिए डॉलर में ही लेना उचित लग रहा था। वियतनामी मुद्रा हजारों और लाखों में थी। मुद्रा बचने पर वह किसी काम की भी नहीं थी तो हमने उसे अपने पास बचाकर रखना उचित नहीं समझा।
वहाँ सुखद आश्चर्य था कि अपना भारतीय वेस्पा स्कूटर वहाँ बिक रहा था। हमारे यहाँ अब वेस्पा नहीं मिलता है। सोचा था कि शायद फैक्ट्री ही बन्द हो गयी है लेकिन वह वियतनाम में था। वहाँ होण्डा की मोपेड और बाइक ही प्रमुखता से थी। मोपेड की ऊँचाई भी वहाँ के लोगों के लिए ही बनी थी, अर्थात भारत के मुकाबले कुछ कम। गाडियां कम थी और मोपेड ज्यादा थी। वियतनाम, कम्बोडिया और थाइलैण्ड, तीनों देशों में ही होर्न नहीं बज रहे थे। जब कि यहाँ के शहरों की जनसंख्या भी बहुत है लेकिन होर्न की आवाज बिल्कुल नहीं सुनाई पड़ती। कई बार तो गाडी आपके करीब आ जाती है लेकिन होर्न नहीं बजाती। इस कारण ध्वनी प्रदूषण बिल्कुल भी नहीं था। सड़के भी साफ-सुथरी और अच्छी बनी हुई थीं। हाँ गाँवों से गुजरते समय कुछ सड़के क्षतिग्रस्त अवश्य थी। सारे ही शहर सुव्यवस्थित थे। लेकिन टेलीफोन और बिजली के तारों का शहर में जाल था। किसी भी गली के नुक्कड़ पर देखिए तारों का जाल दिखायी दे जाता था। वियतनाम में झोपड़ीनुमा होटल बहुत थे, जो हमें सड़क मार्ग से आते हुए दिखायी दिए। यहाँ की इण्डियन रेस्ट्रा बहुत अच्छा था। पहली बार टेबल पर बैठकर, वेटर ने भोजन सर्व किया। बड़ा अच्छा लगा, आराम से भोजन किया। नहीं तो बुफे में लाइन में लगना पड़ता था और मारामारी रहती थी। वहाँ समोसा भी खिलाया गया जो बहुत ही स्वादिष्ट था।
हम अपनी यात्रा के अन्तिम छोर पर आ गए थे लेकिन जब यह मालूम पड़ा कि हमें वापसी उसी मार्ग से करनी है तो सभी के तोते उड़ गए। बस द्वारा दो दिन की यात्रा बहुत ही भारी लग रही थी। कुछ लोग थक गए थे, तो उन्होंने वहीं से बैंकाक के लिए विमान ले लिया और मात्र एक घण्टे में बैंकाक पहुंच गए। जब हम दो दिन तक वीजा, इमिग्रेशन के चक्कर से जूझते हुए बैंकाक पहुंचे तब तक वे अपना वक्त बैंकाक में बिता चुके थे। जैसा की मैंने पूर्व में ही लिखा है कि यदि आयोजकों के द्वारा होमवर्क किया जाता तो ऐसी कठिन यात्रा नहीं होती। सभी को वापसी में वियतनाम से सीधे ही भारत ले आना था। इससे मल्टीपल एन्ट्री से बचा जा सकता था। खैर हम अन्त में बैंकाक पहुंच ही गए। बैंकाक में सारा दिन केवल शापिंग के लिए था, बस शाम को वहाँ क्रूज पर जाना था। हम बैंकाक में अपने पारिवारिक मित्र के साथ चले गए। कुछ बाजार भी किया और शाम को क्रूज के लिए आ गए।
बैंकाक में नदी के अन्दर क्रूज की यात्रा कराई जाती है, जो दो घण्टे की होती है। बहुत ही सुन्दर क्रूज था, दो मंजिला था। हमें नीचे की मंजिल में सीट मिली थी। क्रूज में यात्रा के साथ भोजन भी रहता है और संगीत भी। ढेर सारा भोजन लगा था लेकिन हम सब के लिए वही गिना-चुना भोजन था। लेकिन पर्याप्त था। हम लोग अभी भोजन की शुरुआत कर ही रहे थे कि आर्केस्टा बज उठा और एक गायिका वहाँ आ गयी। उसे मालूम था कि आज क्रूज पर अधिकतर भारतीय हैं तो उसने आते ही कहा वन्देमातरम, भारतमाता की जय, नमस्ते, सत श्री अकाल, वणेक्कम। हम सभी के चेहरे खिल गए। सारा वातावरण अचानक भारतीयता में घुल गया। अब उसने हिन्दी के गाने गाना शुरू किए, एक के बाद दूसरा और फिर यह सिलसिला थमा ही नहीं। जिन्हें भी नृत्य का शौक था, वे खूब थिरके। पूरे दो घण्टे तक समा बना रहा। क्रूज बैंकाक की सुन्दरता दिखा रहा था। इतने विशाल और इतने सुन्दर मन्दिर, जो हम साक्षात नहीं देख पाए थे, वह क्रूज से ही देखे। एक प्यास जग गयी, बैंकाक को अच्छी तरह से देखने की लेकिन हमें तीन घण्टे बाद ही भारत के लिए अपना विमान पकड़ना था इसलिए उस प्यास को अपने साथ ही ले आए। क्रूज से उतरकर सीधे बस में बैठे और रात 11 बजे बैंकाक के सुवर्णभूमि एयरपोर्ट पर पहुंच गए। वहाँ प्रवेश करते ही समुद्र मंथन का विशाल दृश्य बना हुआ है और ऊपर शिव अपनी नृत्य मुद्रा में हैं। बहुत ही सुन्दर बनावट है। न जाने कितने टर्मिनल पार करके हम इण्डिगो विमान तक पहुंचे। आखिर समय पर विमान रवाना हुआ और हम प्रात: 3-30 पर अपने देश भारत में थे। तीन देशों का विकास देखकर, वहाँ की राष्ट्रभक्ति देखकर, वहाँ का अनुशासन देखकर हम गदगद थे और अपने देश में भी ऐसा ही हो इसकी आशा कर रहे थे।
वियतनाम के बारे मेन पढ़ कर अच्छा लगा …. आपकी यात्रा काफी रोचक रही …. आपने विस्तृत वर्णन कर बहुत सी जानकारी दी …. आभार
वाह, नये देश का सुन्दर विवरण..
कितनी नई बातों की जानकारी हुयी ….आभार
सुन्दर विस्तृत यात्रा वर्णन पढ़कर अच्छा लगा।
बेहतरीन वर्णन किया है आपने ..कुछ तस्वीरें और होतीं तो मजा आ जाता.
शिखा जी, तस्वीरे अपलोड होने में समय लग रहा था तो जितनी हुई उतनी ही डाल दी।
Aapke in aalekhon ko padhkar vietnaam ke bareme meri dharnayen hee badal gayeen! Aprateem!
विस्तारित ढंग से वियतनाम यात्रा वृतांत पढकर लगा कि हम ही वहां घूम रहे हैं. बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
वहाँ सुखद आश्चर्य था कि अपना भारतीय वेस्पा स्कूटर वहाँ बिक रहा था। हमारे यहाँ अब वेस्पा नहीं मिलता है।
सारी दुनियां की ओटोमोबाईल कंपनियों ने भारत को अड्डा बना रखा है तो वेस्पा कैसे पीछे रहता, अब साल भर से भारत में भी वेस्पा धडल्ले से बिक रहा है.
रामराम.
अच्छी जानकारी मिली आभार…
वियतनाम का जुझारू रूख एशिया के लिए वास्तव में गौरव की बात है
बहुत रोचक और जानकारी से भरा वियतनाम दर्शन और यह भी सच कि किसी राष्ट्र के निर्माणकर्ता वास्तव में वहाँ के लोग होते हैं !
वियतनाम के बारे में पहली बार इतनी सारी जानकारी पढ़ने को मिली, और अगर सीधी फ़्लाईट होती तो वास्तव में यात्रा सुखद होती ।
आपकी रोचक यात्रा को पढ़के मज़ा आया … बहुत ही विस्तृत जानकारी … वियतनाम के कई अनछुए पहलू भी ध्यान आए …
मांसाहार का प्रचलन हैरत में डालता ही है . बुद्ध के देश में राम कृष्ण के नाम सुनना अच्छा लगा ! शॉपिंग के बिना यात्रा अधूरी ही रहती ।
रोचक यात्रा वृतांत !
यात्रा-विवरण जानकारी से भरपूर और रोचक था। अच्छा लगा।