होली आकर चले गयी। इसबार हम दुनिया जहान से दूर लेकिन अपनों के बीच चले गए। ना फेसबुक और ना ही ब्लाग। वापस आकर देखा तो पोस्टों का मेला लगा है, सभी अपने तरीके से होली मना रहे हैं। इस होली पर हमने काफी पहले ही कार्यक्रम बना लिया था कि अपनी बहन के साथ या यू कहूं कि जीजाजी के साथ होली मनाएंगे लेकिन ऐन वक्त पर जीजाजी तो धोखा दे गए और वे अमेरिका उड़ गए। अब बहन अकेली थी तो और भी जाना बन गया। लेकिन यह तय रहा कि होली केवल गुलाल से ही खेली जाएगी। हमने भी स्वीकृति दे दी। सोच रहे थे कि कोई तो बन्दा आ ही जाएगा, तो अपने आप ही रंगों की होली हो जाएगी लेकिन ऐसा हुआ नहीं। बहन डॉक्टर है और उसका नर्सिंग होम है, कभी कभार हमारी पोस्ट पर टिप्पणी के साथ दिखायी भी दे जाती है। उनका स्टाफ भी बड़ा ही अनुशासित निकला, चुपचाप आया और तिलक लगाकर चले गया। मिलने-जुलने वालों को तो शायद नीचे रिसेप्शन से ही मना कर दिया जाता होगा। फिर भी अच्छी बात यह रही कि हमारे बड़े भाई का परिवार भी आ रहा था। लेकिन उनकी भी यही शर्त की गुलाल से ही खेलेंगे। लो कर लो बात, अब बड़ों से कौन पंगा ले? तभी सूचना आयी कि हमारे एक और बड़े भ्राता और भतीजे का परिवार भी आ रहे हैं तब मन खुश हो गया कि अब तो रंगों की होली हो ही जाएगी। लेकिन वे तो कहीं शोक मिटाने जा रहे थे। खैर होली पर गुलाल खेलने के बाद सोचा की बरसों से बिसरायी ताश को ही हाथ लगा लिया जाए और छकड़ी खेलने बैठ गए। बस सारा दिन खाना-पीना और गपशप में ही दिन बिता दिया। इसलिए इसबार होली अपनों के साथ तो रही लेकिन सूखी-सूखी सी ही रही।
महाराष्ट्र के सूखे का प्रभाव था शायद सभी के मन में जो पानी का उपयोग नहीं हुआ। लेकिन पुणे में बिटिया से बात हुई तो वे गीली होली खेल रहे थे। अब हम राजस्थान में, जहाँ इसबार खूब पानी बरसा था, वहाँ सूखी होली खेल रहे थे और महाराष्ट्र वाले गीली। सहानुभूति का कोई अर्थ ही नहीं रहा। होली पर यदि पक्के रंग ना हो तो लगता ही नहीं कि होली आयी थी। लेकिन सूखे रंग ने अहसास भी करा दिया कि होली तो हर वर्ष ही आएगी लेकिन अब बड़े-बूढों की गिनती में आ गए हो तो चकल्लस बन्द और शराफत शुरू। मुझे लग रहा है कि या तो बच्चा सीखता है या फिर बूढ़ा होता इंसान सीखता है। बच्चे को सिखाया जाता है कि ऐसे बैठो, ऐसे उठो, ऐसे खाओ और ऐसे पीओ। आदि आदि। बूढ़ों को भी सिखाया जाता है कि अब ऐसे बैठो, ऐसे उठो, ऐसे खाओ और ऐसे पीओ। जब कोई मेहमान आता है तो बच्चों को कहा जाता है कि – जाओ बच्चों बाहर जाकर खेलो। अब बूढ़ों को कहा जाता है कि – जाओ घर के अन्दर जाकर बैठो। इसलिए साठ साल के बाद सभी को वापस से सीखना पड़ता है युवाओं के साथ रहने की तहजीब। इसलिए होली पर बड़े-बूढ़े हो-हल्ला मचाएं, रंगों की धमाचौकड़ी करें तो शोभा नहीं देता। बस शालीनता से गुलाल लगाओ और चुपचाप खाते-पीते रहो। तो हमने भी ऐसी ही शालीनता वाली होली खेली और समझ में आ गया कि अब ऐसी ही होली होगी। ज्यादा उछलने-कूदने के दिन गए। हम जैसों के लिए ही शायद फेसबुक आदि हैं जहाँ अपनी तरह से चुपचाप होली खेली जा सकती है। अब आज 31 तारीख हो गयी है और मार्च समाप्त। अप्रेल प्रारम्भ हो गया है तो होली की बात बन्द और नये साल की बात शुरू। देखें अपने नये वर्ष में हम सब देशवासी इस वर्ष को क्या तोहफा देंगे? तो सभी को होली की राम-राम और नवसंवत्सर की शुभकामना।
बहुत प्यारी बहुत सही प्रस्तुति . आपको होली की हार्दिक शुभकामनायें जया प्रदा भारतीय राजनीति में वीरांगना .महिला ब्लोगर्स के लिए एक नयी सौगात आज ही जुड़ें WOMAN ABOUT MAN
बूढे हो जाने की बात अपनी जगह लेकिन एक तो हर वर्ष की पुनरावृत्ति में कहीं न कहीं नवीनता का भाव तो समाप्त होता जाता है और फिर गीले के साथ ही पक्के रंगों को शरीर से उतारने में जो मशक्कत करनी पडती है उसके एवज में वाकई सूखी होली ज्यादा अच्छी लगती है.
सहेलियों के साथ इस बार तय तो हमने भी यही किया था कि सिर्फ गुलाल से ही होली खेलेंगे. बहुत खेल ली रंगों वाली होली. छुड़ाने में कितना समय लगता है, अब और नहीं.
सबने एकमत से कहा, ‘हाँ, गुलाल वाली ही खेलेंगे.’ .हम पांच परिवार बच्चों सहित बिल्डिंग के नीचे इकट्ठे हुए , शुरुआत तो गुलाल से ही हुई. पर फिर चेहरों पे रंग लगाना, बाल्टी भर भर कर भिगोना भी शुरू हो गया.सारे प्लान धरे रह गए.
और अगर अपने हमउम्रों के साथ होली खेली जाए तो फिर उम्र कहाँ आड़े आता है.
रश्मि रविजा जी, यही तो मैं कह रही हूं कि हम तो गुलाल से खेल रहे हैं और महाराष्ट्र वाले पानी से। अगली साल कसर निकालेंगे।
होली और उम्र व्युतक्रमानुपाती हैं…
जय हिंद…
होली के बहाने आपने जीवन के इस पडाव का, महाराष्ट्र के सूखे का और होली वाले दिन की आपकी जीवन चर्या का सुंदर विवरण लिखा.
यह सच है कि मार्च गया और अप्रेल आगई तो होली भी एक साल के लिये विदा लेकिन रंग तो जिंदगी का हिस्सा हैं, इन रंगों के लिये ना गुलाल चाहिये ना गीले रंग चाहिये, इन्हें तो बस अंतर्तम की उमंग चाहिये. वह उमंग बनी रहे यही शुभकामना है.
रामराम.
होली तो गीला ही खेलेंगे, भले ही दो दिन नहाना छोड़ दें।
अरे इत्ती शराफ़त भी कौन काम की भाई! अगले साल फ़िर खेलियेगा होली!
होली में बिना गीले हुए मज़ा तो नहीं आता लेकिन पानी की किल्लत इस पर सोचने को मजबूर करती है.
मूर्खता दिवस की मंगलकामनाओं के आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (01-04-2013) के चर्चा मंच-1181 पर भी होगी!
सूचनार्थ …सादर..!
बहन के नर्सिंग होम चले जाना चाहिए था। हमने तो अस्पताल में भी होली खेली।
गुलाल में ही आनंद आता है।
ये तो उल्टी गंगा बह गई…सारे देश में कहा गया कि महाराष्ट्र में चालीस साल का सूखा पड़ा इसलिए इसबार सबने सूखी होली खेली। मगर यहां आपने सूखी होली खेली ..हद है..खैर अब तो मस्ती शहरों से ही गायब होने लगी है..बड़े होली खेलते नहीं..बूढ़े खेलना नहीं चाहते..या कहें कि बूढ़ों को कोई पूछता नहीं
होली तो हर रंग में भाती है ….. वैसे हमेशा गीला ही खेलते आये हैं…. आपने भी अगले साल कसर निकालने की ठान ही ली है 🙂
या तो खेलो मत हमारी तरह …और खेलो तो सूखी क्यों , जब पानी भरपूर बरसा हो 🙂
तन बूढा होता है,मन को च्रिर युवा रखिये,होली की शुभकामनाएं.
फिर तो आपकी होली भी बढिया रही,
देर से ही सही, होली की ढेर सारी शुभकामनाएं
भई होली ही एक त्यौहार है जो रंगों के साथ खुशियां लाता है … जम के खेलनी चाहिए … रंग तो उतर ही जायगा … ढेरों शुभकामनायें ..
सही प्रस्तुति
ठीक कहा आपने
होली मायकेवालों के साथ नहीं ससुरालियों के साथ बेधड़क होती है -अगली बार देवर के साथ ,भूल जाएँगी बुढ़ापा आप !
pani ke barbadi per holi nahi khelana ye sai nahi.Hum dainik jeewan me viase hi kaphi pani bachate he apne adat se. Esliye tyohar to pure man se manana chaiyehe.
यहाँ तो गुलाल भी नसीब नहीं :)..इसका उम्र से क्या ताल्लुक . बस समय समय की बात है .अगले साल सिर्फ पानी से खेलिएगा :).
साठ साल के बाद बच्चों की तरह ही ,सीखना पड़ता है ।बिलकुल सच कहा आपने कैसे बैठना कैसे खाना ,कैसे त्यौहार मनाना अदि अदि पर जब मन उमंगो। से भरा हो तो जी लो उसके संग ।
सही है बिन पानी की होली में होली का मज़ा कहाँ… 🙂 लेकिन जिस परियावर्ण में हमें रहना है उसका ख्याल भी तो हमें ही रखना होगा। इसलिए इस साल अधिकतर स्थानो में होली सुखी ही रही अर्थात केवल गुलाल वाली ही रही। लेकिन कोई बात नहीं अगले साल पानी वाली खेल लीजिएगा 🙂 उसमें क्या है और जहां तक बुढ़ापे में सीखने की बात है तो कुछ हद तक यह बात सही लगती है। मगर मेरी नज़र में enjoy करने की कोई उम्र नहीं होती बस आपका दिल जवान होना चाहिए।
बढिया लेख
वैसे सच बताऊं, होली तो गीली ही हो तभी आनंद है।
त्यौहारों पर भी सामाजिक सरोकारों की पाबंदी रास नहीं आती
hamari aur se bhi holi and Nav samvatsar ki ap sabhi ko subhkamnaye. Hanuman gupta,Mina Gupta
शायद उम्र के साथ हर त्यौहार के रंग कुछ पीछे छूटते जाते हैं…नवसंवत्सर की हार्दिक शुभकामनायें!
होली कितनी ही सूखी सूखी लगी हो पर मेरा मन तो पूरा पूरा अन्दर तक भीग गया था ।परेशान थी होली पर अकेले ? पर जो तुम सबने आकर मुझे प्यार के रंग से सारोबार किया उससे सुन्दर भी कोई रंग होता है क्या?यह होली मुझे हमेशा याद रहेगी ।