अजित गुप्ता का कोना

साहित्‍य और संस्‍कृति को समर्पित

थाईलैण्‍ड से कम्‍बोडिया की ओर

Written By: AjitGupta - Jul• 08•13

गतांक से आगे – द्वितीय कड़ी

पटाया में हमें एक स्‍थान और दिखाया गया और वह था – ज्‍वेल्‍स फेक्‍ट्ररी। किस प्रकार से हीरे जवाहरात धरती से निकलते हैं, फिल्‍म शो के माध्‍यम से दिखाया गया और फिर कीमती जवाहरात से लदी पड़ी फेक्‍ट्री को दिखाया गया। हीरे-जवाहरात से इतनी सुन्‍दर कलाकृतियां बना रखी थी और उनका मूल्‍य लाखों में था। फोटो खींचने की सख्‍त मनाही थी। किसी को भी यदि वहाँ खरीददारी करनी हो तो जेब भारी-भरकम होनी चाहिए। सभी प्रकार के पत्‍थर वहाँ मौजूद थे। हीरा, पन्‍ना, माणक, वैदूर्य और न जाने क्‍या क्‍या। फटी आँखों से देखने के अलावा हमारे पास और कोई विकल्‍प नहीं था। एक और स्‍थान था पटाया-पार्क, जहाँ जंपिंग टॉवर था। समयाभाव के कारण वहाँ भी टॉवर के ऊपर हम नहीं जा पाए, बस नीचे से ही देखते रहे। बहुत विशाल और ऊँचाई पर स्थित था टॉवर। वहीं नीचे घूमते रहे और एक पेड़ पर नजर ठहर गयी। पेड़ फलों से लदा था लेकिन हमारे लिए अन्‍जान था। बाद में गाइड ने बताया कि यह सारा फ्रूट है।

दूसरे दिन हमें आदेश मिला कि हमें अब कम्‍बोडिया के लिए रवाना होना है। अपना सामान आदि लेकिर होटल खाली करना है। हम नियत समय पर सामान सहित बाहर आ गए लेकिन जिस बस से हमें यात्रा करनी थी, वो अभी नहीं आयी थी। हम होटल के आसपास ही घूमते रहे। होटल के बाहर सुन्‍दर मन्दिर बना था। भगवान बुद्ध का मन्दिर, बाहर दो हाथी बने थे। बेहद खूबसूरत थे। सम्‍पूर्ण थाइलैण्‍ड में मन्दिरों की परम्‍परा है, सभी भवनों के बाहर मन्दिर रहते ही हैं। यहाँ मुख्‍यतया: विष्‍णु को पूजा जाता है, इसलिए भगवान बुद्ध के साथ भगवान विष्‍णु के मन्दिर सभी जगह रहते हैं। होटल के बाहर घूमने पर एक और छोटा मन्दिर दिखायी दिया। लेकिन शायद यह किसी परिवार का दृश्‍य था, एक घर बना रखा था, उसके अन्‍दर घर के बुजुर्ग थे और बाहर अन्‍य सदस्‍य। परिवार संस्‍था और बुजुर्गों को सम्‍मान देता हुआ मन्दिर था। ऐसे मन्दिर भी यहाँ की परम्‍परा है। अब बस लग चुकी थी और हम सामान को बस में लदवाने में लग गए। यदि अपना सामान अपनी बस में ही हो तो  ज्‍यादा सुरक्षित अनुभव होता है।

हम बस में बैठ चुके थे, ह‍में इस यात्रा का अनुभव नहीं था, शायद किसी को भी नहीं था। सभी से सुनते आए थे कि छोटे देशों में वीजा आदि की कठिनाई होती नहीं है, एजेण्‍ट ही व्‍यवस्‍था करके रखते हैं। लेकिन जैसा मैंने पूर्व में लिखा कि हमारे संयोजक ने होमवर्क किया ही नहीं था तो सभी जगह अराइवल वीजा की लाइन में लगना पड़ा। थाईलेण्‍ड के बार्डर पर इमिग्रेशन चेक और फिर बार्डर के पार कम्‍बोडिया बोर्डर पर वीजा के लिए लाइन। बस भी एक देश से दूसरे देश में नहीं जा सकती तो बस भी बदलनी थी। यहाँ फिर कई घण्‍टों की बर्बादी। बस एक बोर्डर पर थोड़ी दूरी पर छोड़ देती थी और वीजा आदि की प्रक्रिया पूरी करके हम सामान सहित दूसरी तरफ निकलते थे। दूसरी बस भी काफी दूरी पर खड़ी रहती थी। अपना सामान स्‍वयं उठाने के अतिरिक्‍त कोई साधन नहीं था। सभी के पास सामान भी प्रचुर था, क्‍योंकि 10 दिन की यात्रा थी तो उसे उठाना सभी के लिए दुसाध्‍य कार्य था।

यात्रा को देखते हुए हमें समझ आने लगा था कि सम्‍मेलन धरती पर कम और बस में ज्‍यादा करना है। इसलिए सभी ने अपनी मानसिकता बना ली और बस को ही सभागार के स्‍थान पर बसागार बना लिया गया। शुरू हो गया बसागार सम्‍मेलन। हमारे साथ युवापीढ़ी भी थी और हम जैसे लोग भी। यह हमारा सौभाग्‍य था कि हमारी बस में श्री हरीश नवल थे। वे श्रेष्‍ठ साहित्‍यकार तो हैं ही, साथ ही उनमें इतनी प्रतिभा है कि उन्‍हें सोलह कलाओं में पारंगत कह सकते हैं। हमारे साथ ही मुम्‍बई के प्रसिद्ध संगीतकार कल्‍याण सेन जी थे। आकाशवाणी भोपाल की उद्घोषिका चेतना थी। हर कला में माहिर आशीष कंधवे थे। सभी के लिए उचित खानपान की व्‍यवस्‍था करने के‍ लिए दिल्‍ली के सुशील गुप्‍ताजी और राजस्‍थान के राजेश अग्रवाल थे। अपने गायन के लिए प्रसिद्ध जयपुर की पुष्‍पा गोस्‍वामी, चित्रा जांगीड, दिल्‍ली की आभा, शोभना, पुणे के चन्‍द्रकान्‍त आदि थे। कहने का तात्‍पर्य यह है कि एक से बढ़कर एक कलाकार हमारे साथ थे।

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jumping tower – pattaya

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temple

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घर एक मन्दिर है

हरीश नवलजी जब बोलते हैं तब लगता है कि शब्‍द मखमल में लपेटकर हमारे पास आ रहे हो। उनकी प्रत्‍येक बात में इतनी बौद्धिकता होने के बाद भी वे सारी बाते सीधे ही दिल में उतर जाती थी। प्रारम्‍भ में परिचय नहीं था, तो बस सुनते रहे, लेकिन धीरे-धीरे परिचय बढ़ा और फिर सभी से आत्‍मीयता बनती चले गयी। आकाशवाणी की चेतना ने माइक सम्‍भाला तो उसी तर्ज पर कार्यक्रम की शुरूआत हुई। “ये आकाशवाणी का कम्‍बोडिया केन्‍द्र है, सुबह के 10 बजे हैं, कार्यक्रम की शुरूआत वन्‍देमातरम् से होगी” सभी ने वन्‍देमातरम् गाकर अपने देश का स्‍मरण किया। फिर कविता से लेकर गीत और संस्‍मरण की अटूट श्रंखला प्रारम्‍भ हो गयी। फिलर के रूप में चौपड़ा जी के चुटकुले चल रहे थे। बस में माइक की व्‍यवस्‍था थी तो सभी को आगे आकर अपनी प्रस्‍तुति देनी होती थी। हमारे साथ थे जयपुर के मेजर रतन जांगीड़। उनकी पत्‍नी चित्रा जांगीड़ न केवल नृत्‍यांगना हैं अपितु वे बहुत अच्‍छी गायक भी हैं। सम्‍पूर्ण यात्रा में उत्‍साह का स्‍तर सबसे अधिक चित्राजी का ही रहा। उन्‍होंने गायन में बेहद खूबसूरत प्रस्‍तुति दी। लेकिन जब जांगीड़ जी का नम्‍बर आया तो उन्‍होंने सबकी आँखें नम कर दी। उन्‍होंने सुनामी की आपबीती घटना सुनाई, कैसे वे परिवार सहित सुनामी की चपेट में आए और किस प्रकार मौत के मुँह से निकलकर सकुशल बचकर बाहर आए। सारे ही रंगारंग प्रस्‍तुतियों के बीच सुशील गुप्‍ता जी द्वारा लड्डू और मठरी खिलाई जाती रही। सभी के पास कुछ न कुछ था तो सबने मिल-बांटकर खाने का आनन्‍द लिया।

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19 Comments

  1. बसागार का रोचक वर्णन …..

  2. girish pankaj says:

    वाह, बेहद जीवंत वर्णन किया है आपने.

  3. anshumala says:

    कई बार ऐसा होता है की जब आप एक साथ कई जगहों पर घुमने जाये तो एक बड़ा समय सफ़र में ही जाता है , बसागार में , हा साथ वाले अच्छे हो तो संफर सुहाना नहीं तो सफ़र में सफ़र करना पड़ता है 🙂

  4. बहुत बेहतरीन ढंग से आपका यात्रा वृतांत आगे बढ रहा है, बहुत ही रोचक.

    रामराम.

  5. सुंदर यात्रा वृतांत ….. सफ़र में समय का यूँ सदुपयोग, अच्छा लगा जानकर …

  6. t s daral says:

    बहुत बढ़िया पिकनिक चल रही है। पढने में आनंद आ रहा है।

  7. बहुत रोचक यात्रा वृतांत…

  8. Dr Kiran mala jain says:

    मुझे लगता है जब सफ़र मैं इतने प्रतिभा शाली व मज़ेदार लोग साथ हो तो सफ़र सुहाना ही होगा ,फिर बाक़ी चीज़ें बेमानी हो जाती है ।

    • AjitGupta says:

      Dr Kiran mala jain हां यह सच है कि हमें बस की चाहत ज्‍यादा रहने लगी थी।

  9. rohit says:

    हिंदी की दुनिया में एक नया शब्द का सृजन कर दिया है आपने। बसागार…वाह कितना प्यारा शब्द है…

  10. वाकई वीजा का इंतजाम अगर पहले से कर लिया जाये तो आसान हो जाता है, और हमेशा याद रखें जब अंतर्राष्ट्रीय यात्रा पर जा रहे हों तो कोशिश करें या तो सामान कम हो या फ़िर सूटकेस में चार पहिये लगे हों और पीठ पर लादने वाले बैग में भी पहिये लगे हों, बैग खींचना आसान होता है, लादना मुश्किल.. हमने तो अपनी यात्रा से यही सीखा है ।

  11. यात्राएं थके मन को विश्राम देती हैं ..
    बधाई !

  12. आपके अनुभवों से जुड़ते चले जा रहे हैं हम -और बताइए !

  13. सुन्दर संस्मरण और राष्ट्रगान का सम्मान बहुत खूब

  14. सौ झंझटों के बावजूद यात्रा अच्छी रही .
    तस्वीरें सैर करा लाई हमें भी !
    रोचक प्रस्तुति !

  15. बसागार में आपकी प्रस्तुति क्या रही?

  16. AjitGupta says:

    अनूप जी तानसेन से तो दूर का रिश्‍ता भी नहीं है, इसलिए कविता को ही बांच देते हैं।

  17. dnaswa says:

    बसागर सम्मलेन का तो मज़ाया ही कुछ और रहा होगा … फिर साथ में दिग्गज हों तो बात ही क्या … जीवंत वर्णन किया है …

  18. कष्ट देखकर तो लग रहा है कि चलती बस में ही सम्मेलन कर लेना था।

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