अजित गुप्ता का कोना

साहित्‍य और संस्‍कृति को समर्पित

परशुराम को डिगा दे उसे मन की चाहतें कहते हैं

मन को परत दर परत खोल दो, पता लगेगा कि न जाने कितनी ख्वाइशें यहाँ सोई पड़ी हैं, जिन ख्वाइशों को हम समझे थे कि ये हमारे मन का हिस्सा ही नहीं हैं, वे तो अंदर ही अंदर अपना अस्तित्व बनाने में जुटी हैं बस जैसे ही किसी ने उन्हें थपकी देकर जगाया वे सर […]

Read the rest of this entry »