अजित गुप्ता का कोना

साहित्‍य और संस्‍कृति को समर्पित

Archive for the 'समाजिक सरोकार' Category

मृत्‍यु के पार, असंवेदनाओं का उपजा संसार, लेकिन जुबान पर ताले हैं

कभी आपके साथ भी ऐसा होता होगा कि किसी मानवीय असंवेदनाओं के कारण या अव्‍यवस्‍थाओं के कारण आपका मन दुखी हो उठा हो लेकिन प्रतिक्रिया करने में अपने आपको अक्षम पा रहे हों। मन करता है कि तुम चीखो और कहो कि यह असंवेदना है, लेकिन जुबान पर ताले पड़ जाते हैं। क्‍यों? क्‍योंकि ये […]

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बेटा बोला कि माँ मैं आपको मिस कर रहा हूँ

ज्‍योतिष को मैं मानती हूँ लेकिन उसे अपने ऊपर हावी नहीं होने देती। मुझे लगता है कि बस कर्म करो, आपको फल मिलेगा ही। लेकिन पता नहीं क्‍यों इन दो-चार दिनों से मुझे लग रहा है कि दिन अच्‍छे आ गए हैं। इसलिए अच्‍छे दिनों को भी आप सभी से बाँट लेना ही चाहिए। क्‍यों […]

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हम इतने छुई-मुई से क्‍यों हैं? किसी ने कुछ कहा और हम भाग खड़े होते हैं?

जब लोगों को देखती हूँ कि गुलाब की पत्तियों से भी घाव कर लेते है तो मुझे लगे काटों के घाव सोचने पर मजबूर कर देते हैं। मेरे घाव कहते हैं कि अरे तू तो रोती नहीं? कांटे भी चुभा दिए, तलवारें भी चला लीं, तोप-तमंचे सभी का तो उपयोग कर लिया फिर भी तू […]

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असली चेहरा तो हमने सात तालों में बन्‍द कर रखा है

हमारे घर के प्रोडक्‍ट बनाते-बनाते आखिरकार भगवान थक गया तो अन्तिम बार थोड़ा टांच-वांच कर हमें छोटा-मोटा रूप दे दाकर धरती पर भेज दिया। अब माँ भी परेशान हो चली थी, बच्‍चों की परवरिश करते-करते, तो उसने भी भगवान द्वारा छोड़ी गयी छोटी-मोटी दरजों को दूर करने में कोई दिलचस्‍पी नहीं दिखायी। जैसा प्रोडक्‍ट आया […]

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हमें तलाश है ऐसे कपड़ो की जो . . .

अमेरिका की यात्रा करना भी एक जद्दोजेहद से कम नहीं है। पता नहीं कितनी तैयारी करनी पड़ती है? ऐसा नहीं है कि अटेची उठाओ, चार साड़ी डालों और चल पड़ो। वहाँ जाने का मतलब है भारतीय वेशभूषा से अलग वस्‍त्र। हमारे राजस्‍थान में तो इतने रंगीन कपड़े पहने जाते हैं कि लगता है हमेशा ही […]

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