अजित गुप्ता का कोना

साहित्‍य और संस्‍कृति को समर्पित

Archive for the 'Uncategorized' Category

एकान्तवास की बातें

मैंने बचपन से ही स्वयं से खूब बातें की हैं, मुझे कभी एकान्त मिला ही नहीं! मैं कभी अकेली हुई ही नहीं! क्योंकि मेरे साथ मेरा मन और मेरी बातें हमेशा रहती हैं। जब भी कोई सामने नहीं होता है, मेरा मन फुदककर मेरे पास आ जाता है और बोलता है – चल बातें करें। […]

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वह घर जो सपने में आता है!

मेरे सपने में मेरे बचपन का घर ही आता है, क्यों आता है? क्योंकि मैंने उस घर से बातें की थी, उसे अपना हमराज बनाया था, अपने दिल में बसाया था। जब पिता की डाँट खायी थी और जब भाई का उलाहना सुना था तब उसी घर की दीवारों से लिपटकर न जाने कितनी बार […]

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कुछ तो अच्छा ही हो जाए!

सारी दुनिया सदमें में एक साथ आ गयी है, ऐसा अजूबा इतिहास में कहीं दर्ज नहीं है। विश्व युद्ध भी हुए लेकिन सारी दुनिया एकसाथ चिंतित नहीं हुई। आज हर घर के दरवाजे बन्द होने लगे हैं, सब एक-दूसरे का हाथ थामे बैठे हैं, पता नहीं कब हाथ पकड़ने का साथ भी छूट जाए! जो […]

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बन्दर भाग रहे हैं

जब पहाड़ों पर बर्फ गिरती है तब मन झूमने लगता है, मन कह उठता है कि ठण्ड थोड़े दिन और ठहर जा। झुलसाने वाली गर्मी जितनी देर से आए उतना ही अच्छा है लेकिन इस बार होली जा चुकी है लेकिन पहाड़ों पर बर्फ पड़ने की खबरे आ रही हैं। मौसम सर्द बना हुआ है। […]

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सुन रहा है ना तू?

रथ के पहिये थम गये हैं। मुनादी फिरा दी गयी है कि जो जहाँ हैं वही रुक जाएं। एक भयंकर जीव मानवता को निगलने निकल पड़ा है, उसके रास्ते में जो कोई आएगा, उसका काल बन जाएगा! सारे रास्ते सुनसान हो चले हैं। जिसे जीवन का जितना मोह है, वे सारे लोग घरों में दुबक […]

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