अजित गुप्ता का कोना

साहित्‍य और संस्‍कृति को समर्पित

तेरे बिना मेरा नहीं सरता रे

हमेशा कहानी से अपनी बात कहना सुगम रहता है। एक धनवान व्यक्ति था, वह अपने रिश्तेदारों और जरूरतमंदों की हमेशा मदद करता था। लेकिन वह अनुभव करता था कि कोई भी उसका अहसान नहीं मानता है, इस बात से वह दुखी रहता था। एक बार उसके नगर में एक संन्यासी आए, उसने अपनी समस्या संन्यासी […]

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शिकारी और शिकार

बंदरों पर एक वृत्त-चित्र का प्रसारण किया जा रहा था – ताकतवर नर बन्दर अपना मादा बन्दरों का हरम बनाकर रहता है और किसी अन्य युवा बन्दर को मादा से यौन सम्बन्ध बनाने की अनुमति नहीं है। यदि युवा बन्दर उस मठाधीश को हरा देता है तो वह उस हरम का मालिक हो जाता है। […]

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प्रेम की सूई दिखायी देती नहीं

मैं जब भी अपनों के बीच होती हूँ, मन करता है ढेर सारी बाते करूँ। वापस से बचपन के हर क्षण को याद करूं। बातें-बातें और बातें बस पुरातन की, जो क्षण रेत की तरह हमारे हाथ से फिसल गये है, उनसे जीने का आनन्द लूँ, लेकिन ऐसा होता नहीं। लगने लगा है कि वर्तमान […]

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तेरा सूरज अलग और मेरा सूरज अलग

सुदृढ़ हवेलियों को जब वीराना अपनी चपेट में ले लेता है तब किसी कोने में पीपल का पेड़ फूट आता है। धीरे-धीरे पेड़ विस्तार लेने लगता है और हवेली खंडहरों में तब्दील होने लगती है। हमारे मन के अन्दर भी एक मजबूत हवेली हुआ करती थी, इस हवेली की नींव हमारे पुरखों ने डाली थी। […]

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स्‍लेट जब रिक्‍त हो जाए तब अपनापन ही रिक्‍तता को भरता है

आपके जीवन की स्‍लेट ठसाठस भरी होती है, लगता है अब इसमें कुछ नहीं समाएंगा लेकिन कभी ऐसे क्षण आ जाते हैं जब एकदम से ही स्‍लेट खाली हो जाती है। आपके पास कुछ शेष नहीं रहता। ऐसा लगता है जैसे कम्‍प्‍यूटर हेंग हो गया हो। सोचने समझने की शक्ति समाप्‍त सी हो जाती है। […]

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