जब हम बचपन में तारों के नीचे अपनी चारपाई लेकर सोते थे तो तारों को समझने में बहुत समय लगाते थे। तब कोई शिक्षक नहीं होता था लेकिन हम प्रकृति से ही खगोल शास्त्र को समझने लगे थे। प्रकृति हमें बहुत कुछ सिखाती है, बस हमें प्रकृति से तादात्म्य बिठाना पड़ता है। कलकत्ता के देवेन्द्र […]
Read the rest of this entry »Archive for March, 2017
कोलकाता मन का और देखन का
युवा होते – होते और साहित्य को पढ़ते-पढ़ते कब कलकत्ता मन में बस गया और विमल मित्र, आशापूर्णा देवी, शरतचन्द्र, बंकिमचन्द्र, रवीन्द्रनाथ आदि के काल्पनिक पात्रों ने कलकत्ता के प्रति प्रेम उत्पन्न कर दिया इस बात का पता ही नहीं चला। मन करता था कि वहाँ की गली-कूंचे में घूम रहे उन पात्रों को अनुभूत […]
Read the rest of this entry »