अजित गुप्ता का कोना

साहित्‍य और संस्‍कृति को समर्पित

Archive for June, 2017

सुना है तेरी महफिल में रतजगा है

अब जमींदारी नहीं रही, रतजगे नहीं होते। जमींदारों की हवेलियाँ होटलों में तब्दील हो गयी हैं। क्या दिन थे वे? हवेली में सुबह से ही चहल-पहल हो जाती, जमींदार भी चौकड़ी जमाने के लिये शतरंज बिछा देते। उनकी हवेली पर ही सारे सेठ-साहूकार एकत्र होते। जहाँ जमींदार शतरंज की बाजी से शह और मात का […]

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संताप से भरे पुत्र का पत्र

कल एक पुत्र का संताप से भरा पत्र पढ़ने को मिला। उसके साथ ऐसी भयंकर दुर्घटना हुई थी जिसका संताप उसे आजीवन भुगतना ही होगा। पिता आपने शहर में अकेले रहते थे, उन्हें शाम को गाड़ी पकड़नी थी पुत्र के शहर जाने के लिये। सारे ही रिश्तेदारों से लेकरआस-पड़ोस तक को सूचित कर दिया गया […]

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अपने अस्तित्व के साथ मरना

बचपन में जब किताबों की लत लगी हो तब कोई भी किताब हो, उसे पढ़ ही लिया जाता था। किताबें ही तो सहारा थी उन दिनों, दुनिया को जानने का उन से अधिक साधन दूसरा नहीं था। एकाध किताबें ज्योतिष की भी हाथ लग गयी और हम हस्त-रेखाओं के नाम-पते जान गये। थोड़ी सी इज्जत […]

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गड़बड़ी पपोलने में है

कल मैंने दिल्ली रेलवे स्टेशन पर एक पति की लाचारी की दास्तान लिखी थी, सभी ने बेचारे पति पर तरस खाने की बात लिखी। अब मैं अपना पक्ष लिखती हूँ। आजादी के बाद घर में पुत्र का जन्म थाली बजाकर, ढिंढोरा पीटने का विषय होता था और माँ-दादी पुत्र को कलेजे के टुकड़े की तरह […]

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जमूरा भाग खड़ा हुआ

जमूरे नाच दिखा, जमूरे सलाम कर, ऐसे खेल तो आप सभी ने देखे होंगे। एक मदारी होता था, उसके साथ दो बन्दर रहते थे, मदारी डुगडुगी बजाता था और खेल देखने वालों की भीड़ जुट जाती थी। दर्शकों को पता था कि खेल बन्दर का है, उनका परिचित बन्दर होता था तो भीड़ भी खूब […]

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